महंगाई की मार से ज्ाूझती जनता?

महंगाई की मार से
ज्ाूझती जनता?
मॉनसून देर से आगे बढ़ रहा है और अब तक 22 फीसदी कम बारिश हुई जिसका असर खाने-पीने की चीजों पर पड़ रहा है। सब्जियों की महंगाई आसमान को छूने लगी है। महंगाई ने इस वक्त लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। खासतौर पर सब्जियों के दाम में जिस तरह की आग लगी है उसने लोगों के घर का बजट बिगाड़ कर रख दिया है। आपको ये जानकर शायद आश्‍चर्य होगा कि आलू, टमाटर जैसी रोजमर्रा की सब्जियों ने भी महंगाई की हदें तोड़ दी हैं। जहां टमाटर पिछले 2 साल में 400 फीसदी से ज्यादा महंगा हो चुका है, वहीं आलू 1 साल में करीब 60 फीसदी तक चढ़ चुका है। दालों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछले 2 सालों में दालें 100 फीसदी तक महंगी हो चुकी है। अब सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि आलू, टमाटर और दाल एक साथ महंगे हुए हैं जिससे लोगों का बजट पूरी तरह से बिगड़ चुका है। गनीमत है कि दाल और टमाटर की कीमतों पर हल्ला मचते ही केंद्र सरकार ने मान लिया कि महंगाई बढ़ रही है। कई बार ऐसा भी होता है कि सरकारें कीमतों में बढ़ोतरी की बात को ही गोल कर जाती हैं। हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान इस सरकार का रवैया भी ऐसा ही था। बहरहाल, बुधवार को बुलाई गई कैबिनेट मीटिंग में संबंधित विभागों के मंत्रियों के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। सरकार दालों की बढ़ती कीमतों के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार मान रही है। अपनी तरफ से उसने दाल का मूल्य 120 रुपये किलो पर स्थिर रखने का फैसला किया है। यहां से आगे का मामला कोरी बयानबाजी का है।
सरकार का कहना है कि इस भाव पर दाल वह खुद ही बेचेगी। खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने दिल्ली में सस्ती दालों की बिक्री के लिए मोबाइल वैन को हरी झंडी दिखाई। जाहिर है, ऐसे प्रतीकात्मक उपायों से कुछ होने वाला नहीं है। सरकार को फेरी लगाकर दाल बेचने के बजाय इसकी कीमत स्थिर रखने के उपाय खोजने चाहिए। म्यांमार और अफ्रीका से अरहर दाल आयात करने और बफर स्टॉक बनाकर सप्लाई बढ़ाने का फैसला ठीक है, लेकिन यह पहले किया जाना चाहिए था। अभी आयात का ऑर्डर देने पर दाल की आवक में वक्त लग सकता है। तब तक जमाखोरी को कड़ाई से रोकना होगा। इस बिंदु पर सरकार की एक हरकत समझ से परे है। एक तरफ दाल, चीनी, टमाटर आलू, प्याज के दाम बढ़ रहे हैं, दूसरी तरफ डीजल की कीमत 1 रुपया 26 पैसा प्रति लीटर बढ़ा दी गई। इससे ढुलाई महंगी होगी और महंगाई की आग ज्यादा भड़केगी।
सरकार की दलील है कि कृषि के लिए लगाए गए अधिभार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में तेजी और समुद्री किराये में बढ़ोतरी के कारण खाने-पीने की चीजें थोड़ी महंगी हो गई हैं। लेकिन असल बात तो यह है कि लगातार दो सूखों का असर कई चीजों के उत्पादन पर पड़ा है। खाद्य वस्तुओं के महंगा होने से खुदरा मूल्य (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) आधारित महंगाई बढ़कर 5.76 प्रतिशत पर पहुंच गई है। अभी के माहौल में यह खतरे की घंटी है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार ने मार्च 2017 तक खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति को 5 फीसदी तक ही सीमित रखने का संकल्प ले रखा है। रिजर्व बैंक का कहना है कि अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिए महंगाई दर इससे ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसीलिए पिछले हफ्ते द्वैमासिक मौद्रिक नीति जारी करते समय उसने महंगाई को लेकर खास तौर से चेतावनी दी थी। सरकारी आंकड़े चाहे जो कहें, दालों की कीमत 200 रुपए किलो तक पहुंच गई है। सब्जियां भी महंगी हो चली हैं। ऐसे में सरकार के हाथ पांव फूलने चाहिए। लेकिन फिलहाल केंद्र सरकार तरह तरह की योजनाओंं का प्रचार प्रसार कर इस ओर से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश में ज्ाुटी है। आर्थिक आंकड़ों की बाजीगरी से महंगाई को समझाने की कोशिश हो रही है। यहां तक कि खाद्य मंत्री रामविलास पासवान बयान दे रहे हैं कि मूल्य नियंत्रण करने की बराबर की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की भी है और उन्हें इसके लिए प्रभावी कदम उठाना चाहिए। अब महंगाई पर नियंत्रण राज्य सरकार करे या केंद्र सरकार, करना तो होगा ही। 

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