किडनी का काला कारोबार


पश्‍चिम बंगाल के राजारहाट से किडनी रैकेट के कथित सरगना टी राजकुमार राव की गिरफ्तारी और प्रतिष्ठित अस्पताल से उसके गहरे रिश्ते ने चिकित्सा के पेशे को कलंकित कर दिया है। भगवान की संज्ञा पाने वाले डॉक्टरों के भी इसमें गहरी लिप्तता पायी गयी है। दिल्ली पुलिस ने इसे एक अतंरराज्यीय किडनी रैकेट होने का दावा किरा है। कहा जा रहा है कि राव नेपाल, श्रीलंका और इंडोनेशिरा में भी ऐसे ही रैकेटों से जुड़ा है। वह जालंधर, कोरंबटूर और हैदराबाद में ऐसा ही रैकेट चलाने को लेकर पुलिस की नजर में था। इस मामे में अब तक दस लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। चार से पांच लाख रुपये मेंं  किडनी खरीद कर चालीस लाख में बेचनेवाले इस गिरोह के तार कई रसूखवाले लोगों से ज्ाुड़े हैं। दिल्ली के अपोलो अस्पताल से किडनी रैकेट का पकड़ा जाना और भी शर्मनाक है। इसने हमारे स्वास्थ्य तंत्र के साथ समाज की बेचारगी को भी जाहिर किया है। पुलिस ने इस काले कारोबार में शामिल अस्पताल के दो कर्मचारियों सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। कहा जा रहा है कि ये लोग देश के कई राज्यों से गरीबों को दिल्ली लाकर उनकी किडनी का सौदा करते थे। डील 30 लाख रुपये की होती थी, जिसमें से दलाल को 3 से 4 लाख और डोनर को सिर्फ एक लाख रुपये दिए जाते थे। बाकी पैसे किसे मिलते थे, यह एक सवाल है।  अपोलो अस्पताल की आंतरिक आकलन समिति के डॉक्टरों से भी इस मामले में पूछताछ की जा रही है। किडनी गिरोह को लेकर सवालों के घेरे में आए इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने अस्पताल में अंग प्रतिरोपण की मंजूरी देने की वर्तमान व्रवस्था के अध्ररन के लिए एक तीन सदस्रीर जांच समिति गठित की है। गिरोह में किडनी के दो वरिष्ठ डॉक्टरों का नाम जुड़े होने का भी संदेह है।
अस्पताल के डॉक्टर खुद को मामले से अनजान बता रहे हैं, पर क्या उनमें से कुछेक के सहयोग और संरक्षण के बगैर यह सब चलता रह सकता था? दिक्कत यह है कि इस तरह के मामलों में छोटी मछलियां पकड़ में आ जाती हैं पर बड़ी मछलियां बच निकलती हैं। इस केस में भी ऐसी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। मानव अंगों का अवैध कारोबार हमारे देश के लिए कोई नई बात नहीं है। इसकी खबरें विभिन्न राज्यों से आए दिन आती रहती हैं। इसे रोकना बेहद जरूरी है क्योंकि यह अमानवीय है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने तो स्पष्ट रूप से कहा है कि मानव शरीर और इसके अंगों को व्यापारिक लेन-देन का विषय नहीं बनाया जा सकता। अंगों के लिए धन प्राप्त करने या अदा करने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। हमारे देश में इस बात पर बहस है कि इसे कैसे रोका जाए। एक राय यह है कि इस संबंध में मौजूदा कानूनों को आसान बनाया जाए। गौरतलब है कि सरकार ने 1994 में ’ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट’ बनाया था, जिसके मुताबिक मरीज के खून के रिश्ते का ही कोई व्यक्ति उसे किडनी दे सकता था। इसके लिए सरकार की इजाजत जरूरी थी। अनुमति देने का काम अंगों के ट्रांसप्लांट के लिए बनाई गई समिति का था। 1999, 2001 और 2011 में इसमें संशोधन किए गए और डोनर का दायरा बढ़ाकर इसमें निकट संबंधियों को शामिल किया गया। प्रक्रिया भी आसान की गई। इसके बावजूद आवश्यकता के अनुरूप प्रत्यारोपण नहीं हो पा रहा। आलम यह है कि हर वर्ष करीब 2.1 लाख भारतीयों को गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन केवल 3 से 4 हजार के बीच ही किडनी ट्रांसप्लांटेशन हो पाते हैं। यह आधिकारिक आंकड़ा है। गैर कानूनी रूप से कितना हो रहा है, कहना मुश्किल है। कुछ लोगों का मानना है कि कानून में संशोधन के बजाय इसे ठीक ढंग से लागू किया जाए। ऐसा कहने वालों में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति बालकृष्णन भी शामिल हैं। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि इस समस्या का समाधान और मुल्कों की तरह अंगदान को बढ़ावा देने से ही हो पाएगा। इसके लिए प्रक्रिया आसान की जाए। लेकिन उन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई समय की मांग है, जो किसी गरीब की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं।

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