राष्ट्रीय राजनीति मेंं दीदी की धमक

राष्ट्रीय राजनीति मेंं
दीदी की धमक
राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी का आना अब बस समय की बात है। राष्ट्रीय स्तर पर उनके जैसे नेतृत्व की जरूरत सभी को महसूस होने लगी है। ममता बनर्जी भी शायद इसके लिए अंदर से तैयार हैं। अंदर की बात है कि अपने उत्तराधिकारी के तौर पर भी उन्होंने एक नाम सोच लिया है। इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने भाई के बेटे और सांसद अभिषेक बनर्जी को काफी प्रचारित किया। जीत के बाद भी मैच विनर और मैन ऑफ द मैच के रूप में बड़े बड़े पोस्टर और बैकर राज्य व्यापी दिखने लगे हैं। च्ाुनाव में भारी सफलता का श्रेय भी अभिषेक बनर्जी को दिए जाने के ममता के रवैये ने यह साबित किया है कि अभिषेक ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि हो सकता है इससे पार्टी के दूसरे नेताओं में भविष्य में नाराजगी  भर जाए लेकिन बहरहाल सब ठीक है। दीदी उत्साहित भाव से चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार दिख रहीं है।  भाजपा और कांग्रेस विरोधी फ्रंट के नेता के रूप में ममता बनर्जी के नाम पर चर्चा श्ाुरू भी हो च्ाुकी है। ममता की ताजपोशी के मौके पर लालू प्रसाद यादव ने तो फेडरल फ्रंट की बात तक कर डाली और भाजपा के खिलाफ सभी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को एक होने का आह्वान भी कर डाला। ममता से भी उन्होंने इस मुहिम में सक्रिय होने का अनुरोध किया। वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर जितने भी चेहरे हैं उनमें सबसे विश्‍वसनीय ममता बनर्जी ही दिख रही हैं। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, देवगौड़ा, जयललिता सहित अन्य छत्रपों की तुलना में उनकी छवि अधिक ईमानदार व कुशल नेता की है। केंद्रीय नेता के रूप में भी उन्होंने कुशल प्रशासक की छवि बनायी है। गौरतलब है कि पश्‍चिम बंगाल में तमाम चुनौतियों और बेशुमार अटकलों के बीच आखिरकार तृणमूल कांग्रेस को भारी सफलता मिली और ममता बनर्जी ने इसके साथ ही दूसरी पारी की शुरुआत की। इस जीत को ऐतिहासिक जीत भी कहा जा सकता है क्योंकि 2011 के बाद टीएमसी को राज्य में पहली बार इतनी बड़ी चुनौती मिली। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी तो दूसरी तरफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी एवं कांग्रेस का गठबंधन टीएमसी को लगातार चुनौती दे रहे थे। इससे एक एक अलग तरह का माहौल पैदा हो गया था और तृणमूल कांग्रेस में भी भय का संचार नजर आने लगा था लेकिन अंतत: सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस को ही पूर्ण जनाधार मिला। इससे पार्टी में बेशुमार उत्साह पसर गया है और पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी काफी जोश में हैं।
2011 में हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के सामने इतनी बड़ी चुनौती नहीं थी लेकिन इस बार काफी बड़ी चुनौतियाँ टीएमसी के सामने थीं। इसके बावजूद ममता बनर्जी आशान्वित थीं। राज्य में सारदा और नारदा कांड ने विपक्षियों को नयी ऊर्जा दी तो कोलकाता के लाईओवर के गिरने से टीएमसी को और धक्का लगा लेकिन इन तमाम गतिरोधों के बावजूद भी सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस को भारी कामयाबी मिली।
अपने समर्थकों में प्यार से दीदी कहलाने वाली ममता बनर्जी ने साबित कर दिया है कि सड़कों पर आंदोलन करने के अलावा उन्हें राजनीति में भी महारत हासिल है। विधान सभा चुनाव में इस बार भारी सफलता ने यही जाहिर किया है लेकिन दीदी के सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था काफी लचर है। इसे पटरी पर लाने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ेगी। इसके अलावा और भी बहुत सारी चुनौतियां उनकी राह देख रहीं हैं, लिहाजा इस कार्यकाल में उन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ेगा। राज्य पर भारी भरकम कर्ज भी है जिसे चुकता करना होगा ममता बनर्जी को। राज्य में नए निवेश के लिए उन्हें माहौल बनना होगा। हालाँकि ममता बनर्जी में पहले से काफी परिपक्वता आयी है इसलिए उनकी पार्टी से जुड़े लोगों को उम्मीद है कि दीदी आगे भी तमाम चुनौतियों का सामना कर लेंगी। ममता काफी सादगीपूर्ण जीवन का निर्वाह करती हैं मगर उनकी पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगते रहे जिससे उनकी छवि थोड़ी धूमिल हुई मगर इसके बावजूद उनमें काफी उत्साह है। जीएसटी पर केंद्र की भाजपा सरकार को समर्थन देकर उन्होंने अपनी दूरदर्शिता व परिपक्वता को साबित भी कर दिया है। ममता बनर्जी भी जानती हैं कि राज्य के विकास के लिए आनेवाले समय में केंद्र की मदद जरूरी होगी। ऐसे में केंद्र के साथ तालमेल आवश्यक है। अभी 2019 में देरी है तब तक ग्राउंड वर्क के साथ-साथ अपनी रणनीति को धार देने के लिए केंद्र की आर्थिक मदद कारगर साबित होगी। 

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