भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के बुधवार को 20 उपग्रहों का एक साथ प्रक्षेपण करने के चलते भारत मानव इतिहास में ऐसा करने वाला तीसरा देश बन गया है। इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पीएसएलवी सी 34 के ज़रिए 20 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जिनमें 3 स्वदेशी जबकि 17 विदेशी उपग्रह हैं। इनमें कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों द्वारा तैयार स्वयं’ नाम की एक सैटेलाइट भी शामिल है। इससे पहले सिर्फ रूस और अमेरिका ही ये कारनामा कर सके हैं। 20 उपग्रह एक साथ भेजकर भारत अब रूस और अमेरिका की श्रेणी में पहुंच गया है। साल 2013 में अमेरिका ने 29 जबकि साल 2014 में रूस ने इसी तरह 33 उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित किए थे। भारत द्वारा भेजे गए उपग्रहों में कनाडा, अमेरिका, इंडोनेशिया और जर्मनी के उपग्रह भी शामिल हैं।
ऐसा नहीं है कि इसरो ने इस तरह का प्रक्षेपण पहली बार किया है। इससे पहले इसरो ने सिंगल मिशन के तहत 2008 में एक बार में 10 उपग्रह प्रक्षेपित किए थे। इसरो ने अपना पहला रॉकेट साल 1963 में लॉन्च किया था। शुरुआत के ठीक 9 साल के अन्दर वर्ष 1975 में इसरो ने पहला उपग्रह सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया। साल 2009 में इसरो ने चांद पर मानव रहित यान भेजकर अमेरिका और रूस जैसे देशों की बराबरी कर ली।
साल 2014 में मंगलयान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर इसरो ने इतिहास ही रच दिया। इसरो ने मंगल मिशन के मामले में अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा को भी पीछे छोड़ दिया। भारत का मंगलयान, नासा की अपेक्षा में काफी सस्ता था।
भारत उपग्रह प्रक्षेपण के लिए पहले ही बाकी अन्तरिक्ष एजेंसियों के मुकाबले 60 प्रतिशत कम पैसे लेता है। इसरो ने अभी तक सभी विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया है। 20 देशों की 57 से ज्यादा अन्तरिक्ष एजेंसियां साल 1999 से ही उपग्रह प्रक्षेपण में भारत की मदद ले रही हैं। भारत जल्द ही जीपीएस की तरह अपना सेटेलाईट नेविगेशन सिस्टम शुरू करने वाला है। इसके लिए ज़रूरी सभी उपग्रह पहले ही सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए जा चुके हैं। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी का बजट 1958 में 1,13,463 करोड़ रुपये लगे थे। वहीं भारत की अंतरिक्ष एजेंसी का बजट 1969 में 6000 करोड़ रुपये था। इन आंकड़ों से बहुत कुछ स्पष्ट है। एक ऐसे देश के 9 सैटेलाइट को हमारी स्पेस एजेंसी अंतरिक्ष में भेज रही है, जिसका बजट हमसे लगभग 20 गुना ज्यादा है। उपलब्धियों के मामले में जो हमसे मीलों आगे है। आज हम उसकी प्रगति के वाहक बनने में सक्षम हैं। यह छाती चौड़ी करने वाली बात तो है।
दरअसल थोड़ा और गहरे जाएंगे तो इसरो पर आपको-हमको और सबको नाज होगा। यह अकेले अमेरिकी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने की बात नहीं है। इसरो यह काम 19 देशों के लिए कर चुका है। 45 विदेशी उपग्रहों को इसरो ने सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचाया है। अपनी स्मृति पर थोड़ा और जोर डालें तो आपको इसरो का मंगल मिशन याद है? ऐसा ही मिशन नासा भी कर चुका है - मार्श मिशन। लेकिन दोनों में आसमान-जमीन का फर्क है। अब तक शायद आपको भी याद आ ही गया होगा कि हमारा मंगल मिशन हॉलीवुड की फिल्म ग्रैविटी से भी सस्ता था। पूरी दुनिया की आईटी इंडस्ट्री में हमने अपनी मेहनत से धाक जमाई। सस्ती और भरोसेमंद सर्विस। इसी लीक पर इसरो भी चल रही है - सस्ती और भरोसेमंद सर्विस। कम से कम असफलता का रिकॉर्ड, जिस देश ने हमारे प्रक्षेपण यान और उल्टी गिनती की सटीकता पर भरोसा किया, उस पर कायम उतरना। इसरो अब इसी के लिए जाना जाने लगा है। इसके साथ ही  ग्लोबल सैटेलाइट मार्केट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है। अभी यह इंडस्ट्री 13 लाख करोड़ रुपए की है।
इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 41 फीसदी की है। जबकि भारत की हिस्सेदारी 4 फीसदी से भी कम है। दुनिया की बाकी सैटेलाइट लॉन्चिंग एजेंसियों के मुकाबले इसरो की लॉन्चिंग 10 गुना सस्ती है। विदेशी सैटेलाइट की लॉन्चिंग इसरो की कंपनी एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड के जरिए होती है। 1992 से 2014 के बीच एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन को 4408 करोड़ रुपए की कमाई हुई। इसरो सैटेलाइट लॉन्चिंग से अब तक 660 करोड़ रुपए की कमाई कर चुका है। यही नहीं इसरो ने एक साथ 20 सैटलाइट लॉन्च करके अपना ही रेकॉर्ड तोड़ दिया है। इससे पहले इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने एक साथ 10 सैटलाइट्स को लॉन्च किया था। पीएसएलवी सी-34 कार्टोसैट-2 सीरीज के 727.5 किलो वाले सैटलाइट के साथ 19 अन्य सैटलाइट्स को लेकर अंतरिक्ष रवाना हो गया। इस लॉन्चिंग में अमेरिका के कुल 13 सैटेलाइट हैं। इसमें गूगल के अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट का वजन 110 किलो है। 3 सैटेलाइट भारत के हैं, जबकि 4 सैटेलाइट कनाडा, जर्मनी और इंडोनेशिया के हैं।
आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 20 उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए 48 घंटे का काउन्टडाउन सोमवार सुबह 9 बजकर 26 मिनट पर शुरू हो गया था। इसरो के अनुसार, इन 20 सैटलाइट्स का कुल वजन तकरीबन 1,288 किलोग्राम है। कार्टोसैट-2 सीरीज के सैटलाइट के साथ जो अन्य सैटलाइट्स लॉन्च हुए हैं उसमें अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और इंडोनेशिया के साथ-साथ भारतीय यूनिवर्सिटीस के भी 2 सैटलाइट हैं।
26 मिनट 30 सेकंड में सभी सैटेलाइट स्पेस में पहुंचा दिए गए। इससे पहले 2008 में इसरो ने एक साथ 10 सैटेलाइट लॉन्च किए थे। इस कारनामे के साथ ही भारत सिंगल मिशन में सबसे ज्यादा सैटेलाइट भेजने के अमेरिका-रूस के एलिट क्लब में शामिल हो गया है। अमेरिका ने 2013 में 29 और रूस ने 2014 में एक साथ 33 सैटेलाइट भेजे थे। स्काईसैट से पृथ्वी के हाई डेफिनेशन फोटो और वीडियो मिलेंगे। पीएसएलवी के साथ स्पेस में भेजे जाने वाले 20 सैटेलाइट का कुल वजन 1288 किलोग्राम है।  इन सैटेलाइट्स को 505 किलोमीटर की ऊंचाई पर ऑर्बिट में पहुंचाया गया है।  कार्टोसैट-2 सैटेलाइट से भेजी जाने वाली फोटोज अर्बन, रूरल, वाटर डिस्ट्रीब्यूशन और दूसरी जरूरी कामों के लिए मददगार होंगी। चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी का 1.5 किलो वजनी सत्यभामासैट ग्रीन हाउस गैसों की जानकारी जुटाएगा। वहीं, पुणे के इंस्टीट्यूट का स्वयं हैम रेडियो कम्युनिटी के लिए मैसेज भेजेगा।

Comments

Popular posts from this blog

परले राम कुकुर के पाला

राजीव गांधी: एक युगद्रष्टा

दिन महीने साल गुजरते जायेंगे..