क्यों पिछड़ रहा बंगाल
सिंग्ाुर में जनांदोलन की जीत पर हम भले ही मूसल से ढोल बजा रहे हैं, लेकिन औद्योगिक निवेश के मामले में पश्चिम बंगाल फिसड्डी ही साबित हो रहा है। इसके पीछे कारण क्या है, इस पर विचार किया जाना चाहिए। भारत का औद्योगिक भूगोल को जानने की जरूरत है। देश के कुछ इलाके, कुछ राज्य तो ऐसे हैं, जहां एक के बाद एक नए उद्योग लगते हैं, लोगों को रोजगार मिलता है और उनकी तरक्की के आंकड़े हमें चौंकाते हैं। इसके विपरीत वे राज्य हैं, जहां औद्योगिक निवेश बहुत कम होता है और साल-दर-साल हम उन्हें पिछड़े राज्यों में गिनते हैं। विश्व बैंक ने कारोबार में आसानी के लिहाज से देश के राज्यों की जो रैंकिंग प्रकाशित की है, वह इस भूगोल का सही आकलन पेश करती है। इससे हम उन कारणों को भी आसानी से समझ सकते हैं, जिनकी वजह से कोई राज्य समृद्ध हो जाता है और कोई पीछे रह जाता है। इस रैंकिंग का पैमाना बहुत सीधा है। विश्व बैंक हर कुछ समय के बाद यह सुझाता है कि राज्यों को अपने यहां कौन-कौन से आर्थिक सुधार करने चाहिए। बाद में राज्यों द्वारा किए गए सुधारों के आधार पर उनकी रैंकिंग तैयार की जाती है। यह मामला सिर्फ सुधार का नहीं है। निवेशक जब कोई बड़ी पूंजी लगाने को तैयार होता है, तो उसे यह तय करना होता है कि कौन सी जगह निवेश के लिहाज से सबसे उपयुक्त है। ऐसे में, इस तरह की रैंकिंग उसके बहुत काम आती है। जाहिर है, इस रैंकिंग में जो सबसे ऊपर के राज्य हैं, वहां निवेश होने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है। इस बार की रैंकिंग में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सबसे ऊपर हैं। नंबर एक के लिए उनमें टाई हो गया है, जबकि पिछले साल तक नंबर एक पर रहने वाला गुजरात इस बार नंबर तीन पर पहुंच गया है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने नए उद्योगों के लिए जो व्यवस्था की है, वे महत्वपूर्ण तो हैं ही, साथ ही वे ऐसी हैं कि दूसरे राज्य उनसे सबक ले सकते हैं। मसलन, तेलंगाना में नया उद्योग लगाने की तमाम तरह की इजाजत लेने के लिए किसी उद्योगपति को सरकारी अधिकारियों से मिलने की जरूरत नहीं है, ये सारा काम ऑनलाइन अपने आप हो जाता है। अन्य राज्यों में उद्योगपतियों को अब भी मंत्रियों और अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते हैं। तेलंगाना ने तकनीक का सही इस्तेमाल करते हुए नौकरशाही की सारी बाधाओं को एक झटके में खत्म कर दिया है। इस राज्य ने अनुमति देने की समय-सीमा तय कर दी है। यहां 200 करोड़ रुपये से कम निवेश की परियोजनाओं को 21 दिन में अनुमति देने का प्रावधान है, जबकि इससे ज्यादा की परियोजना को 15 दिन में ही अनुमति देनी होती है। ऐसे महत्वपूर्ण कदमों से ही वह एक साल के भीतर 13वीं पायदान से पहली पायदान पर पहुंच गया है। क्या बाकी राज्य इससे सबक लेंगे? खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य, जो इस रैंकिंग में बहुत पीछे रहते आए हैं। ऐसे मौकों पर अक्सर वे ऐतिहासिक कारण गिनाए जाते हैं, जिनसे ये राज्य पीछे रह गए। दिलचस्प बात यह है कि बिहार से अलग हुआ झारखंड और उत्तर प्रदेश से अलग हुआ उत्तराखंड पहले दस राज्यों में स्थान बनाने में कामयाब रहे। उत्तर प्रदेश का एक और पड़ोसी सूबा हरियाणा भी इन दस में शामिल है। उत्तराखंड तो पिछले साल 23वें स्थान पर था और इस साल वह नौवें स्थान पर पहुंच गया, जबकि हरियाणा 14वें स्थान से छलांग मारते हुए छठे स्थान पर जा पहुंचा। वैसे यह मामला ऐतिहासिक कारणों का उतना नहीं है, जितना कि मौजूदा समय की जरूरतों के हिसाब से आर्थिक सुधार लागू करने का है। आर्थिक सुधारों को लागू करने और उद्योगों की राह से बाधाएं दूर करने के लिए जिस नई सोच और प्रतिबद्धता की जरूरत होती है, उसमें अतीत कोई भूमिका नहीं निभाता है। तेलंगाना, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने यह दिखाया है कि ईमानदार कोशिशों की बदौलत राज्य की छवि बदली जा सकती है।
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