ट्रंप की जीत के मायने


अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से पूरी दुनिया मेें चर्चा श्ाुरू हो गयी है। भारत में भी इसे लेकर बहस श्ाुरू है। एक तो इसलिए कि किसी को भी उनकी ऐसी जीत की उम्मीद नहीं थी। अभी दो महीने पहले तक यह माना जा रहा था कि इस बार भी अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के लिए उम्मीद का कोई कारण नहीं है। फिर अभी एक हफ्ते पहले तक यह लगा कि वह डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिटंन को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। फिर कुछ सर्वेक्षणों ने कहा कि नहीं, जीत तो हिलेरी ही रही हैं। लेकिन कल ट्रंप जिस अंतर से जीते, वह बताता है कि चुनावी सर्वेक्षण और आकलन अक्सर भारत में ही नहीं, अमेरिका में भी चूक जाते हैं। यह अंतर बताता है कि वहां ट्रंप के समर्थन की एक हवा चल रही थी, जिसे तमाम तरह के विशेषज्ञ समझने में नाकाम रहे। इस जीत ने चौंकाया इसलिए भी है कि अमेरिका के अलावा बाकी दुनिया में उन्हें एक अगंभीर व्यक्ति माना जा रहा था, इसलिए वे चाहते नहीं थे कि ट्रंप जीतें। हाल-फिलहाल तक अमेरिकी मीडिया उन्हें एक ऐसे शख्स के रूप में पेश कर रहा था, जिसका स्वभाव राष्ट्रपति पद के अनुकूल नहीं है।
अब जब डोनाल्ड ट्रंप जीत गए हैं, तो हमारे सामने एक अन्य तरह की दिक्कत है। पूरी दुनिया जानती है कि महिलाओं के बारे में उनके विचार और कुविचार क्या हैं? सबको पता है कि अल्पसंख्यकों के बारे में अक्सर उनके मुंह से किस तरह के फूल झरते रहे हैं? उनके चाल, चरित्र और चेहरे के तमाम कारनामें पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया को लगातार दिखाए और बताए जाते रहे हैं। तमाम खबरों में उन्हें या तो विदूषक बनाया जाता रहा है या खलनायक। इस तरह की बातें तकरीबन हर जगह चुनावी प्रचार का एक हथकंडा होती है, लेकिन दिक्कत यह है कि इन्हें छोड़ दें, तो हम दरअसल उस शख्स के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, जो अब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे मजबूत फौजी ताकत का मुखिया बनने जा रहा है।
आर्थिक नीतियों और विदेश संबंधों पर हमने उनके उग्र तेवर और आक्रामक शब्दों वाले भाषण तो सुने हैं, लेकिन हम नहीं जानते कि वे इन नीतियों को कौन-सा आकार देने जा रहे हैं। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने तो उन्हें अमेरिका के इतिहास का ऐसा ‘प्रेसीडेंट इलेक्ट’ कहा है, जो इस पद के लिए सबसे कम तैयार है। हम यह उम्मीद भर बांध सकते हैं कि चुनाव का प्रचार जिस निचले स्तर पर पहुंच गया था, डोनाल्ड ट्रंप अब उससे उबरकर एक गंभीर राष्ट्रपति के रूप में सामने आएंगे।
बेशक भारत के आम लोग और खासकर अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के ज्यादातर लोगों ने इस चुनाव में हिलेरी का समर्थन किया था, लेकिन ट्रंप की जीत में भारत के लिए कोई बुरी खबर नहीं है। यह मुमकिन है कि वह आर्थिक नीतियों में अमेरिका की कंपनियों पर नकेल कसें, जिससे भारत से होने वाली आउटसोर्सिंग में थोड़ी कमी आ जाए, पर यह भी एक सीमा से ज्यादा नहीं हो सकेगा। अभी तक ट्रंप ने जो तेवर दिखाए हैं, उनसे भारत एक उम्मीद यह तो बांध ही सकता है कि नया अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया अपनाने की नीति त्याग सकता है।
वैसे एक चीज यह भी कही जाती है कि अमेरिका की रिपब्लिकन सरकारें भारत के लिए ज्यादा अच्छी साबित हुई हैं, बनिस्बत वहां की डेमोक्रेट सरकारों के। जिसका एक सबसे अच्छा उदाहरण भारत और अमेरिका के बीच हुआ परमाणु करार है, जो शायद वहां डेमोक्रेट सरकार होने की स्थिति में न हो पाता। वैसे भी भारत का जितना बड़ा बाजार है और उसने जो रुतबा हासिल कर लिया है, अब अमेरिका की किसी भी सरकार के लिए भारत को नजरंदाज करना आसान नहीं है।

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