नापाक हरकत की सेंचुरी

कहा जा रहा है कि सर्जिकल के बाद पाक ने नापाक हरकत की सेंचुरी ठोक डाली। अर्थात सीमा पर सीज फायर की 100 घटनाएं घटीं। सीमाई गांव वीरान हो गये हैं। कई स्कूलों के भवन क्षतिग्रस्त हुए हैं। इस बीच सैनिकों की शहादत जारी है। हालांकि हमारी ओर से फेस सेविंग करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक का ढिंढोरा जमकर पीटा गया। सरकारी तंत्रों से लेकर भक्तों की फौज तानपूरा लेकर इसके प्रचार प्रसार में लग गयी। हालांकि भक्त विरोधी भी लट्ठ लेकर इसके विरोध में मुखर हो रहे हैं। कई कहने वाले कहते फिर रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ। जबकि आये दिन प्रचारित किया जा रहा है कि पड़ोसी आसमान में एफ-16 विमानों ने मुंह अंधेरे उड़ान भरकर सोते हुए बच्चों को कच्ची नींद से जगाकर रुला भी दिया, सेना के जवान सीमा की ओर कूच कर गए, हाईकमिश्‍नरों को बुलाकर फटकार भरी चिट्ठियों का आदान-प्रदान हो गया, दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी सामरिक समझ के हिसाब से गम, गुस्से और ख्ाुशी का इजहार कर लिया, वीर रस से ओत-प्रोत कवियों व संजीदा सेक्युलर शायरों ने पिंगल और व्याकरण के अनुरूप गीत और गजलें गढ़ लीं। यह तो वही बात हुई कि कौआ कान ले गया की कातर पुकार सुनते ही सब अपने कान दबाकर कौए के पीछे भागें और मासूम कौआ दस हजार वोल्ट की हाईटेंशन वायर पर बैठा मजे से मादा की ओर प्यार की पींग बढ़ाता रहे। यूएनओ ने साफ कह दिया कि एलओसी पर कोई टंटा होते उसने तो नहीं देखा। यूएनओ अत्यंत महत्वपूर्ण वैश्‍विक संस्था है। बड़े- बड़े मुल्कों के छोट-छोटे मसले सुलझाती है।
लल्लू-पंजू टाइप देशों के गंभीरतम मामलों को भी बस ‘हुम्म’ करके टरका देती है। उसके पास ऐसी मामूली फौजदारी की वारदात से निपटने के लिए न तो वक्त है, न नीयत। वह कोई बीट कांस्टेबल है कि हर मौका-ए-वारदात पर पहुंच जाए? किस्सा यह कि सीमा पर हुआ कुछ भी नहीं, पर इतना सब हो गया। यह तो वही बात हुई कि शादी हुई नहीं और बच्चे के नामकरण के उपलक्ष्य में लड्डू बंट लिए। दोनों ओर से धमकियों का जमकर प्रसारण हुआ। पड़ोसी ने एटम बम की बात तो ऐसे की, जैसे वह परिंदों को डराने वाला बागवानों का पटाखा हो। मिसाइलों की धौंस ऐसे दी गई, जैसे वह दीपावली के अवसर पर बोतल में रखकर आसमान की ओर उड़ाने वाली सुर्री हो। और तो और, युद्ध की सूरत में मृतकों की संख्या इस तरह गिनाई गई, जैसे इनकम टैक्स विभाग आय घोषणा योजना के अंतर्गत मिले कालेधन का आंकड़ा दे रहा हो। यह खूब रही कि न तानसेन ने मेघ मल्हार गाया, न बादल बरसे और युद्धोन्माद से तपते मन तर-बतर भी हो लिए। चाय की चौपाल और नुक्कड़ों पर आर पार की लड़ाई चस्के लेकर सुनायी जा रही है, लेकिन परिणाम की ओर किसी का ध्यान नहीं है। ऐसा लगता है कि फिल्मों में किसी की मौत के कारुणिक दृश्य पर आंसू बहाते हुए लोग पॉपकॉर्न का आनंद ले रहे हों। ऐसा नहीं है कि हमारे पास हल   नहीं है।
युद्ध होने की स्थिति में पाक को नेस्तनाब्ाूद करने की कूवत हमारी सेना में बख्ाूबी है। यह किसी से छुपा नहीं है। पाक सेना भी यह जानती है। पाक की हालत बदतर करने के लिए हमें आर्थिक रणनीति बनाने की जरूरत है। अफगानिस्तान, भूटान और बांग्लादेश का साथ मिलने के बाद सार्क सम्मेलन का रद्द होना भारत की ऐसी ही आर्थिक रणनीति है। पाकिस्तान के बिना दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने से उसकी हालत पतली हो जायेगी। जरूरत है आर्थिकतौर पर दिवालिया हो च्ाुके पाक को अलग थलग कर पटखनी देने की। 

Comments

Popular posts from this blog

परले राम कुकुर के पाला

सोनिया का इटली का वह घर

फूलन देवी : The Bandit Queen---पार्ट-3