धन काला या मन काला
अगर हमारे देश में लोग स्वत: अपना आयकर सहित अन्य कर च्ाुकाने लगे तो कई समस्याओं का समाधान अपनेआप हो जायेगा। इसके लिए हमारी मानसिकता बदलनी होगी। कानूनी चाब्ाुक के डर से कर च्ाुकाने की प्रवृत्ति से किनारा करना होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पांच सौ और एक हजार के नोट अचानक बंद करके सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अपनी इस पहल से मोदी सरकार ने साबित कर दिया है कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए वह कोई भी जोखिम उठाने के लिए तैयार है। इससे पहले 1978 में एक हजार, पांच हजार और दस हजार रुपये के नोट वापस लिए गए थे। लेकिन उन दिनों ये नोट बहुत ज्यादा चलन में नहीं थे।
आज पांच सौ और एक हजार का चलन इतना ज्यादा है, जितना उस वक्त दस-बीस के नोटों का रहा होगा। एक आकलन के मुताबिक 2011 से 2016 के बीच 500 रुपये के नोटों की संख्या 76 फीसदी और 1,000 रुपये के नोटों की तादाद 109 फीसदी बढ़ गई, जिससे यह संदेह भी गहराने लगा कि बड़ी संख्या में जाली नोट चलन में आ गए हैं। इन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के नेटवर्क के जरिए नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते भारत भेजा जा रहा है। जाली नोट का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के अलावा आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भी होता है। ऐसी चुनौतियों के बीच एक चौंकाने वाला कठोर कदम समय की जरूरत बन गया था। इस फैसले का पहला असर तो यह होगा कि जाली नोट बेमतलब हो जाएंगे। काले धन की एक बड़ी मात्रा भी पड़ी-पड़ी बेकार हो जाएगी, क्योंकि निर्धारित समय में किसी के लिए बहुत ज्यादा नोट बदलना आसान नहीं होगा। लोग कार्ड से या ऑनलाइन पेमेंट करने के लिए प्रेरित होंगे, जिससे खरीद-बिक्री पर टैक्स छुपाना कठिन हो जाएगा। इस तरह इकॉनमी में पारदर्शिता आएगी, जिसके दीर्घकालिक असर ज्यादा होंगे। रियल एस्टेट सेक्टर में आने वाला काला धन रुकेगा, जिससे प्रॉपर्टी की कीमतें कम हो सकती हैं।
पढ़ाई के लिए कैपिटेशन फी के नाम पर ली जाने वाली रकम की उगाही भी मुश्किल हो जाएगी। राजनीति में काले धन के लेनदेन पर रोक लगेगी। सरकार सिर्फ नोट वापस नहीं ले रही, वह पांच सौ और दो हजार के नए नोट भी लाने जा रही है, जो पहले से ज्यादा सुरक्षित होंगे।
इन फैसलों से देश के एक वर्ग को परेशानी भी हो रही है। खासकर कम आमदनी वाले पेशों में लगे उन लोगों को, जो बड़े नोटों को संपत्ति की तरह सुरक्षित रखते हैं। उनमें कई ऐसे हैं, जिनके पास कोई पहचान पत्र नहीं है। वे अपने नोट कैसे बदलेंगे, यह एक सवाल है। कहीं इस नाम पर उनका शोषण न हो। इसी तरह कई छोटे-मोटे कारोबारी हैं जो नगदी में ही धंधा करते हैं।
उन्हें एकाएक नई व्यवस्था से तालमेल बिठाने में दिक्कत आ सकती है। इन छोटी-मोटी परेशानियों को एक तरफ रख दें तो यह कदम कुल मिलाकर देश हित में है। पर यह दोहराना जरूरी है कि कोई भी मौद्रिक पहल काले धन जैसी बीमारियों में सिर्फ राहत दे सकती है। इन्हें जड़ से ठीक करने का काम वित्तीय नीति के एजेंडे पर आए, तभी बात बनेगी। सही मायनों में काला धन पर अंकुश लगाने के लिए हमें अपने काले मन को धो पोंछ कर स्वच्छ करना होगा। स्वेच्छया ईमानदारी बरतने की आदत डालनी होगी।
आज पांच सौ और एक हजार का चलन इतना ज्यादा है, जितना उस वक्त दस-बीस के नोटों का रहा होगा। एक आकलन के मुताबिक 2011 से 2016 के बीच 500 रुपये के नोटों की संख्या 76 फीसदी और 1,000 रुपये के नोटों की तादाद 109 फीसदी बढ़ गई, जिससे यह संदेह भी गहराने लगा कि बड़ी संख्या में जाली नोट चलन में आ गए हैं। इन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के नेटवर्क के जरिए नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते भारत भेजा जा रहा है। जाली नोट का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के अलावा आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भी होता है। ऐसी चुनौतियों के बीच एक चौंकाने वाला कठोर कदम समय की जरूरत बन गया था। इस फैसले का पहला असर तो यह होगा कि जाली नोट बेमतलब हो जाएंगे। काले धन की एक बड़ी मात्रा भी पड़ी-पड़ी बेकार हो जाएगी, क्योंकि निर्धारित समय में किसी के लिए बहुत ज्यादा नोट बदलना आसान नहीं होगा। लोग कार्ड से या ऑनलाइन पेमेंट करने के लिए प्रेरित होंगे, जिससे खरीद-बिक्री पर टैक्स छुपाना कठिन हो जाएगा। इस तरह इकॉनमी में पारदर्शिता आएगी, जिसके दीर्घकालिक असर ज्यादा होंगे। रियल एस्टेट सेक्टर में आने वाला काला धन रुकेगा, जिससे प्रॉपर्टी की कीमतें कम हो सकती हैं।
पढ़ाई के लिए कैपिटेशन फी के नाम पर ली जाने वाली रकम की उगाही भी मुश्किल हो जाएगी। राजनीति में काले धन के लेनदेन पर रोक लगेगी। सरकार सिर्फ नोट वापस नहीं ले रही, वह पांच सौ और दो हजार के नए नोट भी लाने जा रही है, जो पहले से ज्यादा सुरक्षित होंगे।
इन फैसलों से देश के एक वर्ग को परेशानी भी हो रही है। खासकर कम आमदनी वाले पेशों में लगे उन लोगों को, जो बड़े नोटों को संपत्ति की तरह सुरक्षित रखते हैं। उनमें कई ऐसे हैं, जिनके पास कोई पहचान पत्र नहीं है। वे अपने नोट कैसे बदलेंगे, यह एक सवाल है। कहीं इस नाम पर उनका शोषण न हो। इसी तरह कई छोटे-मोटे कारोबारी हैं जो नगदी में ही धंधा करते हैं।
उन्हें एकाएक नई व्यवस्था से तालमेल बिठाने में दिक्कत आ सकती है। इन छोटी-मोटी परेशानियों को एक तरफ रख दें तो यह कदम कुल मिलाकर देश हित में है। पर यह दोहराना जरूरी है कि कोई भी मौद्रिक पहल काले धन जैसी बीमारियों में सिर्फ राहत दे सकती है। इन्हें जड़ से ठीक करने का काम वित्तीय नीति के एजेंडे पर आए, तभी बात बनेगी। सही मायनों में काला धन पर अंकुश लगाने के लिए हमें अपने काले मन को धो पोंछ कर स्वच्छ करना होगा। स्वेच्छया ईमानदारी बरतने की आदत डालनी होगी।
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