जापान से दोस्ती पर चिढ़ा चीन


 भारत-चीन के बीच विवादों को देखते हुए जापान भारत को अपने पाले में करना चाहता है। वह चाहता है कि भारत दक्षिण चीन सागर विवाद में भी हस्तक्षेप करे। इसके लिए उसने अपनी दशकों पुरानी परमाणु नीति भी बदल ली है और भारत के साथ असैन्य परमाणु सहयोग के लिए तैयार हो गया है। अखबार का कहना है कि पिछले कुछ सालों से शिंजो एबी प्रशासन चीन को घेरने के लिए ज्यादा सक्रिय होकर क्षेत्रीय ताकतों को गोलबंद करने में लगा है। पिछले कुछ सालों से जापान की कूटनीति पर ध्यान देने से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। इसने लिखा है कि भारत को जापान से परमाणु और सैन्य तकनीक की जरूरत है। इसके अलावा उसे निर्माण उद्योग और हाई स्पीड रेल जैसे ढांचागत क्षेत्र में भी ज्यादा निवेश की जरूरत है। हालांकि, अखबार का कहना है कि भारत शायद ही जापान की इच्छाओं के अनुरूप अपनी पुरानी नीति को बदलेगा।
भारत और जापान ने ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता करके अपने रिश्ते को नई गर्माहट दी है। इस करार पर शुक्रवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापानी पीएम शिंजो आबे ने हस्ताक्षर किए। दोनों मुल्कों के बीच परमाणु करार पर बातचीत कई वर्षों से जारी थी, लेकिन फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र में 2011 में हुई दुर्घटना के बाद से जापान में राजनीतिक स्तर पर इसका विरोध हो रहा था। आपत्ति का एक कारण यह भी था कि भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत की दलील थी कि चूंकि उसके पड़ोसी चीन और पाकिस्तान परमाणु क्षमता संपन्न देश हैं, लिहाजा वह अपनी सुरक्षा के लिए एकतरफा तौर पर परमाणु अप्रसार संधि का हिस्सा नहीं बन सकता। हां, वह अपनी सैन्य परमाणु क्षमता का अनावश्यक इस्तेमाल नहीं करेगा।
बहरहाल, जापान ने इस समझौते के लिए अपनी रजामंदी देकर जाहिर कर दिया कि वह भारत को कितनी अहमियत देता है। इस तरह भारत एनपीटी पर हस्ताक्षर न करने वाला वह पहला देश है, जिसके साथ जापान ने यह समझौता किया है। इस समझौते के बाद अब जापान न्यूक्लियर रिएक्टर्स लगाने के लिए तकनीक और ईंधन भारत को दे सकेगा। जापान न्यूक्लियर एनर्जी मार्केट की एक बड़ी ताकत है। इस समझौते से अमेरिकी कंपनियों वेस्टिंगहाउस और जीई को भी भारत में परमाणु संयंत्र लगाने में सहूलियत होगी, क्योंकि इन दोनों में जापानी निवेश है। जाहिर है यह समझौता भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अपनी बढ़ रही ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और वायु प्रदूषण कम करने के लिए भारत अपने परमाणु बिजली उद्योग के आकार और क्वॉलिटी को बेहतर करना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि भारत-जापान असैन्य परमाणु करार स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी को लेकर हमारे संबंधों में एक ऐतिहासिक कदम है।
यूं तो जापान से हमारी दोस्ती बहुत पुरानी रही है पर नरेंद्र मोदी ने राजनयिक चौखटों से आगे बढ़कर इसमें विश्‍वास और स्नेह की गर्माहट पैदा की है। दोनों मुल्कों का यह रिश्ता विश्‍व राजनीति पर भी गहरा असर डालेगा। एशिया में चीन के बढ़ते वर्चस्व को संतुलित करने के लिए भारत-जापान समीकरण वक्त की जरूरत है। जापान की पूंजी और टेक्नोलॉजी भारत की अर्थव्यवस्था को नए शिखर पर पहुंचा सकती है। मौजूदा समय में जापान भारत में चौथा सबसे बड़ा निवेशक है। यहां उसके निवेश को और ऊंचे पैमाने पर ले जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापानी कंपनियों को आमंत्रित किया। साथ ही जापानी निवेशकों को भरोसा दिया कि भारत को दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सुधारों को आगे बढ़ाया जा रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में भारत और जापान के आपसी रिश्ते और मजबूत होंगे। भारत और जापान के बीच प्रगाढ़ होते रिश्ते से चीन आशंकित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा पर निगाह गड़ाए बीजिंग का मानना है कि भारत उसके खिलाफ जापान का मोहरा नहीं बनेगा। सरकार नियंत्रित अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में जापान पर आरोप लगाया कि वह भारत-चीन विवाद का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करना चाहता है।

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