भड़काऊ भड़ास पर अंकुश
मन में जो आए बक दें और दिल में जो आए कलमबंद कर दें, भले ही उससे किसी की इज्जत का भTा बैठ जाए। यदि इतनी छूट किसी भी आदमजात को दे दी जाए तो वह क्या-क्या कर सकता है? इसकी छोटी सी मिसाल सोशल नेटवîकग साइट्स पर देखने को मिल जाती है। किसी के धड़ में आपका सिर या आपके नाम के साथ किसी और का नाम जोड़ देना तो बच्चों के खेल से भी आसान व सहज हो गया है। कई बार तो अर्द्ध नंगे बदन में आपकी काया भी इन साइट्स पर दिख सकती है, बशर्ते आप मशहूरियत की बिरादरी के सदस्य हों। जब तक बात हंसी-मजाक तक थी तब तक तो सबको मजा आ रहा था लेकिन अब यह नाक का फोड़ा हो गया है। जब इस आग की लपट पार्टी के आला नेताओं को अपनी लपेट में लेने लगी तो सरकार की नींद खुली। लाजिमी है कि तीखा हमला सरकारी पक्ष पर ही होता है। विपक्ष अभी चटखारे भरकर मजे ले रहा है, लेकिन कल इनकी भी बारी आ सकती है। बात सत्ता पक्ष या विपक्ष के चरित्र हनन की नहीं है। इस तरह की हरकत पर अंकुश लगाए जाने की जरूरत है। हमारे महापुरुषों व देवी-देवताओं के चित्र के साथ भी अतीत में खिलवाड़ होता रहा है, जो किसी भी सूरत में सहन नहीं की जा सकती। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम