कौन तय करेगा अश्लीलता की परिभाषा
Lokenath Tiwary, लोकनाथ तिवारी अश्लीलता का मुद्दा सदैव ही बीच-बीच में उठता रहा है। इसकी कोई स्वीद्भत परिभाषा नहीं है। सिनेमा में अश्लीलता को लेकर एक प्रसिद्ध न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति बनी थी जिसने अश्लीलता के प्रश्न पर विस्तृत रूप से विचार किया था। साहित्यकारों को आज फिर संभवत: जस्टिस कपूर की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए और इस विषय पर विचार-विमर्श, तर्क-वितर्क करना चाहिए। अश्लीलता का कोई एक मापदण्ड या मानदण्ड कभी नहीं रहा, न रह सकता है। संदर्भ, वर्णन व परिवेश की आवश्यकता और कई अन्य तत्व इस बात को तय करते हैं कि कोई लेखक अश्लील है या नहीं। नारी का मांसल वर्णन अनंतकाल से साहित्य में होता आया है लेकिन न कालिदास अश्लील थे, न भतृहरि, न इस्मत चुगताई, न सहादत हसन मन्टो, न भगवती चरण वर्मा जबकि ये सभी लोग आधुनिक जीवन से अधिक ‘प्यूटिटन’ जमाने में लिखते आये थे। बहुत से लोग हैं जो खजुराहो या जैन मन्दिरों के मैथुन दृश्यों को नहीं देख सकते क्योंकि उन्हें वे अश्लील लगते हैं। उनके अन्तर्निहित सौन्दर्य का उन्हें बोध तक नहीं होता। लेखक की लेखनी या सृजन में यदि सौन्दर्य है तो वह अश्लील हो ही नह...