खुश हो जाओ आज तुम्हारा ही दिन है बंधु !


व्यंग्यकार लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary)

सुबह-सुबह व्हाट्सप पर पत्रकारिता दिवस की बधाई देते बिरादरों के कमेंट्स देख स्मरण हो आया कि आज उन बंध्ाुओं का दिन है, जिनको शुभ से अधिक अशुभ की तलाश रहती है। गोली चली हो, हत्या हुई हो, छापा पड़ा हो या किसी आदमी ने कुत्ते को काटने सरीखा कृत्य किया हो,  दुर्घटना, आपदा व स्कैंडलवाली जगहों पर कवियों की कल्पना से भी पहले पहुंचनेवाले इन प्राणियों के बारे में लोगों में तरह-तरह की भ्रांतियां हैं। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इस विशेष बिरादरी को मेहनताने की जगह ताने से ही काम चलाना पड़ता है। इनके कार्यों की सराहना बाहर भले ही होती हो, इनके पालनहार व मालिक मुख्तार रोज इनकी गलतियां निकालने में ही ज्ाुटे रहते हैं। फिर भी इन जीवों को अपने पर ग्ाुमान ख्ाूब रहता है। इनमें से कुछ तो अपनी तिकड़मों से चांदी काटते रहते हैं, लेकिन जिनके पास चांदी काटने लायक दांत नहीं हैं वे आदर्शवाद बघारने में संत शिरोमणियों की श्रवणेन्द्रियों को कतरने से भी बाज नहीं आते। एक शोधकर्ता के अनुसार पत्रकारों की कई नस्लें पायी जाती हैं। सर्वोत्तम प्रजाति उन महापुरुषों की है जिनके पास पत्र तो नहीं है लेकिन कार है। इन की तादाद अधिक है। यह प्रजाति आसानी से महानगरों में सुलभ है। नेताओं और नौकरशाहों से इनकी ख्ाूब छनती है। लिखंत पढ़ंत नाम को ही करते हैं लेकिन हर मीटिंग व पार्टियों में इनकी खास जगह होती है। इनके पत्रों में कंटेन्ट हो या न हो सरकारी विज्ञापन अवश्य होते हैं। अतिउत्साह में पत्रकारिता की पढ़ाई कर नामी गिरामी संस्थानों से निकलनेवाले बच्चों को अपना दास बना कर ये उनसे ही काम कराकर अपना नाम कमाते हैं। सत्ताधारी पार्टियों से इनका विशेष लगाव रहता है। हर बात पर सारगर्भित तथ्य प्रस्तुत करनेवाले ये बिरादर हर विषय पर भाषण देने में निपुण होते हैं। बयानवीरों की कैटेगरी में इनका विशेष उल्लेख किया जाता है। यदि आदर्श बातों का संसार में टोटा हो गया हो तो इनकी सेवाएं ली जा सकती हैं। बातों में आदर्श घोलना इन्हें खूब आता है। इनके रहते संसार से आदर्शवाद का अंत नहीं हो सकता। मसलन इनका तकिया कलाम होता है, पत्रकारिता मिशन है कमीशन के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिये।
एक प्रजाति ऐसे पत्रकारों की है जिनके पास काम ही काम है। घर में जब जाते हैं तो गली के कुत्तों के अलावा सभी सोये रहते हैं। दिन और रात इनके लिए एक समान है। ये लोग पत्रकारिता जगत के सर्वहारा होते हैं। समाचार संपादक, सलाहकार संपादक, कार्यालय संवाददाता, विशेष संवाददाता सरीखे विशेषणों वाले ये जीव अखबारों के आफिस में पाये जातेे हैं। दड़बेनुमा खांचे में बैठकर नेट व एजेंसियों के अलावा टेलीविजन व व्हाट्सएप के माध्यम से समाज में क्रांति उत्पन्न करने के लिए अखबारों के पेज भरने का काम ये बख्ाूबी करते हैं। इनके घरों के बच्चे यदाकदा ही लायक होते हैं, क्योंकि ये अपने बच्चों व बीबी को छोड़कर हर जगह समय पर पहुंचते हैं। बच्चों की स्कूल फी समय पर नहीं देते। राशन वाले का उधारी समय पर नहीं च्ाुकाते। किसी की शादी में या श्राद्ध में अपने बच्चों व पत्नी के साथ नहीं पहुंच पाते। बच्चों को छुट्टियों में घ्ाुमाने ले जाने जैसे वायदे मोदी जी के कालेधन लाने के वायदे की तरह निभाते हैं। इनकी जिम्मेदारी केवल अखबार के लिए होती है। ऐसे लोगों के लिए एक मशहूर बेबाक नेता ने कहा भी था कि ऐसे पत्रकारों की तुलना बीड़ी श्रमिक से ही की जा सकती है। जिसके काम के घंटे तय नहीं होते और पगार तो भगवान प्रसाद लेबल (बीपीएल) कैटेगरी की होती है। एक अन्य श्रेणी है जो कहीं न कहीं से प्रेस कार्ड ज्ाुगाड़ कर अपने वाहन, दोपहिया, चौपहिया पर बड़े बड़े स्वर्णाक्षरों में प्रेस लिखवा लेते हैं। शहर के सभी संपाादकों से इनकी छनती है। या यूं कहिए कि ये संपादकों के भांड होते हैं। छपास के मरीज ये पत्रकार केवल अपने अदभ्ाुत लेख को येन केन प्रकारेण छपवाने की ज्ाुगत में लगे रहते हैं। हर जगह ढिंढोरा पीटते हैं कि ये पत्रकार हैं। इनका आर्टिकल छपा नहीं कि लेकर उसे मित्रों और शत्रुओं को दिखाने निकल पड़ते हैं। एक अन्य वर्ग है संभ्रांत व महान श्रेणी के पत्रकारों की इनके पास मनी व मैटर दोनों है। सोने के चम्मच लेकर इस पेशे में शौकिया श्ाुमार हुए ऐसे लोगों को टीवी चैनलों पर चेहरा दिखा कर ज्ञान बघारते हुए देखा जा सकता है। पहले तीन कैटेगरीवाले इन्हीं की तरह बनने का सपना संजोये अपना सारा जीवन काट देते हैं। किसी न किसी पार्टी से इनको राज्यसभा का टिकट भी मिल जाता है। इसके अलावा पत्रकारों की कई अन्य प्रजातियां भी हैं जिनमेें से एकाध ख्ाुद को गणेश शंकर विद्यार्थी का वंशधर मानने का ग्ाुमान भी करते रहते हैं। 

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