ममता व मोदी के संबंध सुधरेंगे !

ममता व मोदी के
संबंध सुधरेंगे !
विधानसभा च्ाुनाव बीत गया है। आज नयी सरकार के मुखिया के तौर पर ममता बनर्जी शपथ लेने वाली हैं। च्ाुनाव में एक दूसरे के खिलाफ तल्ख टिप्पणी का दौर समाप्त हो गया है। अब नये दौर की श्ाुरुआत होनवाली है। राजनीति में दुश्मन का दुश्मन का दोस्त बनता आया है। इस बार भी कुछ ऐसा ही होने का संकेत मिल रहा है। नरेंन्द्र मोदी की अग्ाुवाई वाली सरकार के दो वर्ष पूरे हो गये हैं। ममता बनर्जी भी अपनी दूसरी पारी श्ाुरू करने जा रही हैं। कांग्रेस व वाममोर्चा के गठबंधन को च्ाुनाव बाद भी कायम रखने की कवायद से ममता व मोदी के बीच की दूरियां घटेंगी। मां, माटी और मानुष के नारे के साथ सफर शुरू करने वाली ममता ने इसे दूसरी पारी के रूप में भी आगे बढ़ाया है। निकट भविष्य में पश्‍चिम बंगाल में भाजपा को सत्ता का स्वाद मिलने से रहा। ऐसे में भाजपा व केंद्र सरकार के लिए बंगाल में ममता बनर्जी को सपोर्ट करना ही बेहतर साबित होगा। बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी और उनके नए कैबिनेट सहयोगी 27 मई को जब शपथ लेंगे, तब उस समारोह में केन्द्रीय संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू भी मौजूद रहेंगे। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधि के तौर पर वहां जाएंगे। शपथ ग्रहण के 48 घंटा पहले कोलकाता से सटे न्यू टाउन को ‘स्मार्ट सिटी की लिस्ट में शामिल कर केंद्र सरकार ने ममता बनर्जी को संकेत तो दे ही दिया है। माना जा रहा है कि यह तो अभी शुरुआत है। अगले कुछ दिनों में बंगाल में केंद्र की ओर से विशेष पैकेज की झड़ी लगने वाली है। यह स्थिति बंगाल के साथ ही नहीं, तमिलनाडु के साथ भी रहने वाली है। तमिलनाडु में जयललिता के शपथ ग्रहण में नायडू और केंद्रीय मंत्री राधाकृष्णन गए थे। राधाकृष्णन तमिलनाडु की कन्याकुमारी सीट से भाजपा सांसद हैं। जयललिता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विट कर बधाई दी थी और उम्मीद जताई कि केंद्र और तमिलनाडु की नई सरकार मिलकर काम करेंगी। ममता बनर्जी को खुद फोन कर जीत की बधाई दे चुके हैं नरेंद्र मोदी। दोनों राज्यों में जीतने वाली पार्टी के सुप्रीमो के साथ इस सदाशयता के राजनीतिक मतलब निकाले जा रहे हैं।
अगले दिनों में केंद्र सरकार ममता बनर्जी और जे. जयललिता- दोनों ही के राज्यों को विभिन्न मदों में विशेष पैकेज के कई उपहार देगी। इसके राजनीतिक कारण माने जा रहे हैं। दोनों पार्टियों को कांग्रेस या गैर-भाजपाई गठबंधन से दूर रखने की कोशिश में है एनडीए। 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह रणनीति अख्तियार की गई है। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी के अनुसार, ‘हमारी पार्टी प्रस्तावित फेडरल फ्रंट के पक्ष में है। ममता बनर्जी की इस बारे में राय स्पष्ट है। फेडरल फ्रंट को लेकर कोई औपचारिक प्रस्ताव हमारे पास आया तो सोचेंगे। लेकिन मुद्दों के आधार पर हम केंद्र को समर्थन भी देते रहेंगे। वे कहते हैं, ‘जहां तक स्मार्ट सिटी और केंद्रीय पैकेज का सवाल है, बंगाल की अरसे से अनदेखी की गई है। केंद्र कुछ करना चाहे तो स्वागत है। जाहिर है, नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार की ओर से दिखाए जा रहे सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार का असर दिखने लगा है। इसके राजनीतिक मायने लगाए जा रहे हैं। इस बार के विधानसभा नतीजों के अनुसार, ममता बनर्जी और जयललिता की पार्टियां कुल 63 लोकसभा सीटों पर मजबूत हुई हैं। विधानसभा सीटों पर मिले वोटों के आधार पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की झोली में बंगाल की 42 में से 37 सीटें दिख रही हैं और जयललिता की पार्टी की 26 सीटें। 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल को 34 और जयललिता को 38 सीटें मिली थीं। दोनों की सीटें मिलाकर लोकसभा में अहम स्थिति बन रही है। इस कारण ममता और जयललिता अगले तीन साल तक किसी विपक्षी शिविर में न चली जाएं- इसकी कोशिश भाजपा नेतृत्व अवश्य करेगा। यही उचित भी होगा। 

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