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कोलगेट का कोलकाता कनेक्शन

कोलगेट का कोलकाता कनेक्शन लोकनाथ तिवारी कोलकाता। कोयला खदानों से जुड़ी अच्छी या बुरी किसी तरह की घटनाओं का सम्बन्ध कोलकाता से होना स्वाभाविक है। विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कम्पनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का मुख्यालय कोलकाता में ही है। अत: कोयला मंत्री का कोलकाता आगमन स्वाभाविक है। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की बेटी की शादी न्यूअलीपुर में हुई है। पूर्व कोयला मंत्री संतोष बागड़ोदिया का भी कोलकाता से गहरा सम्बंध रहा है। उनका मकान भी न्यूअलीपुर में है तथा उनका जमाजमाया कारोबार भी कोलकाता में है। कोयला आवंटन विवाद में सीबीआई ने जिन पांच कंपनियों पर छापे मारे, उनमें से कई का संबंध नागपुर के मनोज जायसवाल के अभिजीत ग्रुप से है। श्रीप्रकाश जायसवाल व मनोज का परिवार कानपुर से हैं, और दोनों की ही रिश्तेदारी कोलकाता में हैं। मनोज की ससुराल कोलकाता में है तो मंत्री की बेटी की शादी कोलकाता में हुई है। सूत्रोें के अनुसार नागपुर के अभिजीत ग्रुप की कई कंपनियां बिजली, सड़कें, माइनिग, स्टील, सीमेंट और टोल कलेक्शन में काम करती हैं। मनोज तीन दशकों तक पिता की कंपनी में अपनी सेवाएं देते रहें लेकिन

जिन्दगी- मौत न बन जाए सम्हालो यारो

जिन्दगी- मौत न बन जाए सम्हालो यारो · ममता के जुझारूपन से लें सबक लोकनाथ तिवारी कोलकाता। दक्षिण कोलकाता के प्रिंस अनवर शाह रोड स्थित साउथ सिटी कॉम्प्लेक्स के पैंतीस मंजिले टॉवर से कूदकर जान देने वाली माँ व दो बेटियों में से एक कSर पर्यावरण प्रेमी थी। पेड़ों की टहनियों को नुकसान पहुंँचने पर हाय तौबा मचाने वाली युवती ने अपनी जीवन लीला समा’ कर ली। आर्थिक तौर पर मजबूत इन मा-बेटियों की आत्महत्या ने एक बार फिर चुलबुली हीरोइन दिव्या भारती, पूर्व मिस इंडिया और अभिनेत्री नफीसा जोसेफ, आइटम गर्ल सिल्क स्मिता, हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन की पूर्व पत्नी फिजा उर्फ अनुराधा बाली और गीतिका शर्मा सरीखी महिलाओं की याद दिला दी। इनकी मौत ने यह साबित कर दिया है कि रंग-बिरंगी और बेवाक जिदगी जीने के बावजूद मानसिक संतुष्टि नहीं होने से अपना ही जीवन बोझ लगने लगता है। पैसा, शोहरत और आलीशान जीवन जीने वालों की शान ऐसी होती है कि ये बदहाली व गम को अपनी राह बदलने पर मजबूर कर दें। पर अचानक काल के गाल में खुद को धकेलने वाली इन शोहरतमंद महिलाओं की परिणति देखकर अनायास ही यह सवाल उठ खड़ा होता है कि इनके

यौन कारोबार में हाई प्रोफाइल हुए दलाल

यौन कारोबार में हाई प्रोफाइल हुए दलाल लोकनाथ तिवारी कोलकाता। यौन कारोबार के दलाल हाई प्रोफाइल हो गये हैं। बाकायदा कार्यालय खोलकर अपने क्लायंट की मुंहमांगी मुरादें पूरी करते हैं। ग्राहक की पुलिस से सुरक्षा व पूर्ण संतुष्टि का भी पूरा ख्याल रखा जाता है ताकि क्लायंट स्थायी ग्राहक बना रहे। कॉलगल्र्स और दलालों का नेटवर्क दो स्तरों पर है। एक अत्यंत हाईप्रोफाइल है जिसमें फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली और आधुनिक वेशभूषा वाली हाई फाई कॉलगर्ल हैं तो दूसरा नेटवर्क महाराष्ट्र, सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, नेपाल और भूटान से लाई गई बेबस लड़कियों का है। ग्राहक की मांग के अनुसार ही कॉलगर्ल उपलब्ध कराई जाती है। सेक्स के इस कारोबार में नये ग्राहक को प्रवेश बहुत मुश्किल से मिलता है। पकड़े जाने के डर से केवल पुराने व नियमित ग्राहकों को ही प्राथमिकता दी जाती है। ग्राहक को एक निश्चित स्थान पर कॉलगर्ल की डिलीवरी कार के माध्यम से कर दी जाती है। वहां से ग्राहक अपने वाहन से उसको मनचाहे स्थान पर ले जाता है। कोलकाता पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार विश्वसनीयता इस धंधे का प्रमुख हिस्सा है। कॉलगर्ल सीधी ड

भड़काऊ पहनावा या कमजोर चरित्र

हर वह स्त्री वेश्या नहीं होती और ना ही हो सकती है, जो अपनी पसंद के कपड़े पहने। सवाल यह भी है कि उकसाने वाले कपड़े अगर पहने भी है तो पुरुष की अपनी नैतिकता कौन तय करेगा? पुरुष का चरित्र इतना दुर्बल क्यों हैं कि पहनावे या नारी काया को देखते ही पतनोन्मुख हो जाता है? नैतिकता और गरिमा की सारी जिम्मेदारी महिलाओं के ही सिर पर क्यों? अगर कोई लड़की सुंदर व आकर्षक लग रही है तो इसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि वह यौन आमंत्रण दे रही है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि पुरुष अपने पर काबू ही ना रख पाए और उस पर टूट पड़े तथा बाद में इसका दोष लड़की के कपड़ों पर मढ़ दे? हमारे देश के दक्षिणी भाग में स्थित एक बड़े राज्य के पुलिस विभाग के मुखिया ने अपने सुविचार व्यक्त करते समय महिलाओं के पोशाक व पहनावे को निशाना बनाया है, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है। हालांकि केन्द्गीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने इस बयान का विरोध करते हुए कहा है कि हर नागरिक को अपनी पसंद के कपड़े पहनने का अधिकार है। पहनावा अवसर के हिसाब से होना चाहिए। जाहिर है कि आप जब फुटबॉल या टेनिस खेलने जाते हैं तो ऊपर से नीचे तक कपड़ों में लिपटकर नहीं जा सकते। वहीं किसी कॉ

गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में

'वैलेंटाइन डे’ का मौसम शुरू हो गया है। कुछ देकर दिल लेने या देने की परंपरा हमारे देश में कहाँ से आई, इसका कोई ऑथेंटिक इतिहास नहीं मिल पाया है। 'रोज डे’, 'प्रपोज डे’, 'चॉकलेट डे’, टेडी बीयर डे, 'हग डे’ और 'किस डे’ के बाद वैलेंटाइन डे का बहुप्रतीक्षित दिवस आता है। इन दिनों को माध्यम बनाकर प्रेमी युगल एक दूसरे के प्रति अपने दिल की भावनाओं को उजागर करते हैं। हाँ, इसके पहले कुछ न कुछ देकर अपनी सुरक्षा पुख़्ता करने की कोशिश जरूर की जाती है। स्वयंभू प्रेमगुरुओं का मानना है कि पहले किसी के समक्ष प्रेम का इजहार करना खतरे से खाली नहीं होता था। पता नहीं कब लेने के देने पड़ जाए। कुछ देकर खुश करने के बाद अपने दिल की भावनाओं को जुबान देने में कम खतरा होता है। पहले तो चिTियों के माध्यम से दिल की बात कही जाती थी, जिसमें बहुत खतरा भी होता था। खत के साथ गुलाब या गेंदे का फूल भी होता था। साथ में यह करबद्ध अनुनय विनय भी होती थी कि इसे अपने भाई, पिता या काका के हाथ में नहीं पड़ने दें। भले ही प्रेम प्रस्ताव ठुकराकर राखी बाँधने की नौबत आ जाए, प्रेम के इजहार में अच्छे-अच्छों की घिग्

टुकड़े-टुकड़े मेंं बंटती जिन्दगी

बांटो और राज करो (डिवाइड एंड रूल) की नीति अंग्रेजों ने यूं ही नहीं अपनाई थी। यह तो मानव जाति के डीएनए में बसी हुई है। पूरी मानव जाति से हम भारतीय भी शामिल हैं। हमारी फितरत में तो सदैव बटवारे का भूत सवार रहता है। जब हम पृथ्वी से बाहर होते हैं तो हमें दूसरे ग्रहों की तुलना में अपनी धरती सुंदर लगती है। धरती पर हमें एशिया महाद्बीप खूबसूरत लगता है। यहां तक कि विश्व कप फुटबाल या हॉकी प्रतियोगिताओं में हमारी टीम नहीं होने पर हम एशियाई समर्थक बन जाते हैं। विदेश यानि पश्चिमी महादेशों में होने पर एशियाई होने की भावना, एशिया में आते ही दक्षिण एशिया या सार्क देशीय बन जाती है। यहां तक कि हमारे प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा को भी चांद से 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा’ दिखा। भारत मेें पहले तो हम दक्षिण व उत्तर भारतीय में बंटे रहते हैं। उसके बाद हिन्दी व गैर हिन्दी प्रदेशों में बंट जाते हैं। भाषा के आधार से परे हटते ही हम प्रांतों की सीमाओं में सिमट जाते हैं। प्रांतीयता के भीतर भी उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम इलाकों को अलग करने की मांग हमारे भीतर बलवती हो उठती है। इसका ज्वलंत उदा

.....जब रावण बस्यो पड़ोस

हमारे जीवन में परिवारवालों के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान अगर किसी के लिए होता है तो वे हैं हमारे पड़ोसी, जिनको चाहकर भी हम बदल नहीं सकते। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शायद पड़ोसियों से परेशान होकर या उनके प्रति अपना अगाध प्रेम प्रदर्शित करने के लिए ही कहा होगा कि आप मित्र तो बदल सकते हैं,शत्रु भी बदले जा सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं बदले जा सकते। पड़ोसियों के मामले में मेरे एक मित्र काफी खुशकिस्मत रहे हैं। घर हो या कार्यस्थल हर जगह उनकी पड़ोस सुखदायी होती है। इस संदर्भ में मेरी किस्मत काफी दगाबाज है। 'जहां गइली खेहो रानी, ऊंहा ना मिले आग पानी’ की कहावत चरितार्थ होती है। वहीं बंजर की स्थिति है। घर में मेरे पड़ोस में बलियाटिकों का जमावड़ा है। दिनदहाड़े हो या घोर अन्हरिया, इनके घरों से दोअर्थी गाने की गंूज सुनाई देती रहती है। सीढिèयों पर चढ़ते-उतरते इनकी मोबाइल फोन पर फुल वॉल्युम में 'लगाई दिहीं ... .. हूक राजाजी’ और 'लगावेलू जब लिपिस्टिक हिलेला आरा डिस्टि्रक्ट’ जैसे गाने बजते रहते हैं। जब धार्मिक मूड में होते हैं तो असमय 'ऊं जय जगदीश हरे’ की धुन भी सुनने को मि