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जीत चाहे जिसकी हुई, पर हारी कांग्रेस

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए भारी मायूसी लेकर आए हैं। जहां एक तरफ असम और केरल में हारकर कांग्रेस ने सत्ता गंवाई है, वहीं पश्‍चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी पार्टी के हाथ मायूसी ही लगी है। असम में बीजेपी ने पहली बार कमल खिलाकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया है। बुजुर्गवार नेता तरुण गोगोई लाख कोशिशों के बावजूद चौथी बार अपनी सरकार बनाने में नाकाम रहे। हालांकि अब कांग्रेस के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि राख से भी खड़े होकर दिखाएंगे। खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा है कि हम जनता का भरोसा जीतने के लिए फिर से कोशिश करेंगे। हम आपको राज्यवार बताते हैं कि किस तरह कांग्रेस ने अपनी सत्ता गंवाई और विधानसभा चुनावों का यह रण हार बैठी। विधानसभा चुनावों में इस बार सबसे अधिक चर्चा असम को लेकर हुई। असम में कांग्रेस की सरकार ने अपना तीसरा कार्यकाल पूरा किया था। तरुण गोगोई चौथे कार्यकाल के लिए जनता की अदालत में पहुंचे थे। उधर, बीजेपी ने भी असम का किला फतह करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा था। विधानसभा चुनावों के बाद दोनों दलों ने जीत के दावे कि

इस च्ाुनाव में ममता की जीत के मायन

इस बार ममता बनर्जी को अपने दम पर बहुमत मिली है। छह चरणों में हुए मैराथन च्ाुनाव के दौरान प्रचार से लेकर सारी रणनीतियों को बनाने का दारोमदार जिसके कंधे पर था वह ममता बनर्जी ही थीं। स्टार प्रचारक कहें या कुशल रणनीतिकार, हर भ्ाूमिका में उनकी प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी। केंद्र की भाजपा सरकार भी उनको टार्गेट कर रही थी। च्ाुनाव के दौरान एक के बाद एक स्टिंग वीडियो जारी किये गये, जिसमें तृणमूल के वरिष्ठ नेताओं को सरेआम पैसे लेते हुए दिखाया गया। फ्लाईओवर हादसे के बाद भी विपक्ष ने इसके लिए तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेवार ठहराया। पिछली बार अर्थात 2011 में हुए पश्‍चिम बंगाल राज्य विधान सभा च्ाुनाव में ममता बनर्जी ने 34 साल से लगातार सत्ता में रही वाममोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका था। उस समय केंद्र में सत्ता धारी यूपीए सरकार का तृणमूल को भरपूर समर्थन मिला था। इस बार परिस्थितियां बिलकुल विपरीत थीं। सारदा घोटाला और नारदा स्टिंग ऑपरेशन में घिरी तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी भी लांछन से उद्विग्न हो गयी थीं। आखिरकार दक्षिण कोलकाता की एक रैली को संबोधित करते हुए उन्हें कहना पड़ा था कि  दो थप्पड़ मार लो, लेकि

कौन तय करेगा अश्‍लीलता की परिभाषा

Lokenath Tiwary, लोकनाथ तिवारी अश्‍लीलता का मुद्दा सदैव ही बीच-बीच में उठता रहा है। इसकी कोई स्वीद्भत परिभाषा नहीं है। सिनेमा में अश्‍लीलता को लेकर एक प्रसिद्ध न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति बनी थी जिसने अश्‍लीलता के प्रश्‍न पर विस्तृत रूप से विचार किया था। साहित्यकारों को आज फिर संभवत: जस्टिस कपूर की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए और इस विषय पर विचार-विमर्श, तर्क-वितर्क करना चाहिए। अश्‍लीलता का कोई एक मापदण्ड या मानदण्ड कभी नहीं रहा, न रह सकता है। संदर्भ, वर्णन व परिवेश की आवश्यकता और कई अन्य तत्व इस बात को तय करते हैं कि कोई लेखक अश्‍लील है या नहीं। नारी का मांसल वर्णन अनंतकाल से साहित्य में होता आया है लेकिन न कालिदास अश्‍लील थे, न भतृहरि, न इस्मत चुगताई, न सहादत हसन मन्टो, न भगवती चरण वर्मा जबकि ये सभी लोग आधुनिक जीवन से अधिक ‘प्यूटिटन’ जमाने में लिखते आये थे। बहुत से लोग हैं जो खजुराहो या जैन मन्दिरों के मैथुन दृश्यों को नहीं देख सकते क्योंकि उन्हें वे अश्‍लील लगते हैं। उनके अन्तर्निहित सौन्दर्य का उन्हें बोध तक नहीं होता। लेखक की लेखनी या सृजन में यदि सौन्दर्य है तो वह अश्‍लील हो ही नह

दूसरे देशों को कूड़ाघर बनाने की चीनी नीति

घटिरा माल से दूसरे देशों को कूड़ाघर बनाने की चीनी नीति चीन विकास के नाम पर दुनिरा को तबाह करने वाली नीति पर चल रहा है। वह अपने विकास की ऐसी रोेजना पर काम कर रहा है जिसकेे कारण पूरी दुनिरा कूड़े के ढेर में तब्दील हो जाएगी लेकिन वह समृद्धि की राह पर तेजी से बढ़ेेगा। चीन सरकार ने हाल ही में अपने इस्पात और रासारनिक पदार्थों के आरात व निर्रात को बढ़ावा देने के लिए करों में कटौती की है। इससे स्टील केे सामान का उसका निर्रात बढ़ेगा। उल्लेखनीर है कि नकली माल बनाने में चीन अव्वल नंबर पर है। दुनिरा में नकली माल के कारोबार के आंकड़े सामने आए हैं। इनके मुताबिक भारत पूरे विश्‍व में नकली माल कारोबार करने में पांचवें नंबर पर है जबकि चीन का स्थान पहला है। पूरी दुनिरा में पाइरेटिड और नकली माल का कारोबार हर साल करीब पांच लाख का है। इसमें चीन की सबसे अधिक 63 प्रतिशत हिस्सेदारी है। चीन के बाद तुर्की, सिंगापुर, थाईलैंड और भारत का नंबर आता है। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकॉनामिक कॉपरेशन एंड डिवेलपमेंट की ओर से कराई गई स्टडी में रह बात सामने आई है। रूरोपिरन रूनिरन इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑफिस की मदद से तैरार की गई इस रिपोर्ट

दो साल मोदी सरकार उपलब्धियों के साथ च्ाुनौतियां भी

दो साल मोदी सरकार उपलब्धियों के साथ च्ाुनौतियां भी  एनडीए नीत नरेंद्र मोदी सरकार को दो साल पूरे होने वाले हैं। इन दो सालों के दौरान सरकार ने जनता से जुड़े तमाम बड़े फैसले लिए। कुछ फैसलों की सराहना हुई तो कुछ में विपक्ष समेत जनता का भी विरोध झेलना पड़ा। हालांकि खुद को देश का मजदूर नंबर वन कहने वाले मोदी ने आम आदमी की तमाम छोटी-छोटी तकलीफों का बड़ा निदान निकालने की भरसक कोशिशें की हैं, फिर वो चाहे गरीबों को एलपीजी सिलेंडर मुहैया कराने की बात हो या फिर काशी में मछुआरों को ई-बोट बांटना। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि नरेंद्र मोदी ने इन दो सालों में जनता का कितना विश्‍वास जीता। तो जानिए केंद्र सरकार की बीते दो साल में क्या-2 बड़े फैसले और उपलब्धियां रही हैं। जन धन योजना के जरिए करीब 15 करोड़ लोगों के बैंक खाते खुल गए, करीब 10 करोड़ रूपे कार्ड जारी हो गए और लोगों को लाइफ कवर और पेंशन की सुविधा मयस्सर हुई।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत मिशन लोगों को इतना भाया कि इसमें साथ देने के लिए दिग्गज कारपोरेट हस्तियां भी कूद पड़ीं। अनिल अंबानी उसमे एक बड़ा नाम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल

दलबदल के डर से स्टांप पेपर पर हस्ताक्षर

दलबदल के डर से स्टांप पेपर पर हस्ताक्षर उत्तराखंड के बाद अब पश्‍चिम बंगाल में कांग्रेस को बगावत का डर सता रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने हाल के इलेक्शन में जीते सभी 44 विधायकों से स्टांप पेपर पर साइन कराए हैं। इसे एक तरह से सोनिया और राहुल गांधी के प्रति वफादारी बनाए रखने का बॉन्ड माना जा रहा है। जबकि जनतांत्रिक राजनीति में दलबदल अपने आप में कोई बुराई नहीं है। एक  समाज में हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है और वह उसे कभी भी बदलने का अधिकार रखता है। अगर विचारों में परिवर्तन को प्रारंभ से ही बुराई मान लिया जाए तो यह उस व्यक्ति के अधिकार का हनन या उसमें हस्तक्षेप करना होगा। स्वतंत्र भारत की राजनीति में दलबदल के दर्जनों उदाहरण हमारे सामने हैं, जो इस अधिकार की पुष्टि करते हैं। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी याने राजाजी भारत के शीर्ष राजनेता थे। वे लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे। कांग्रेस ने ही उन्हें देश का प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल बनाया तथा बाद में मद्रास प्रांत का मुख्यमंत्री भी। ऐसे उद्भट विद्वान व विचारशील नेता ने भी एक दिन अपनी मातृसंस्था छोड़कर स्वतंत्र पार्टी की स्थापना क

ममता व मोदी के संबंध सुधरेंगे !

ममता व मोदी के संबंध सुधरेंगे ! विधानसभा च्ाुनाव बीत गया है। आज नयी सरकार के मुखिया के तौर पर ममता बनर्जी शपथ लेने वाली हैं। च्ाुनाव में एक दूसरे के खिलाफ तल्ख टिप्पणी का दौर समाप्त हो गया है। अब नये दौर की श्ाुरुआत होनवाली है। राजनीति में दुश्मन का दुश्मन का दोस्त बनता आया है। इस बार भी कुछ ऐसा ही होने का संकेत मिल रहा है। नरेंन्द्र मोदी की अग्ाुवाई वाली सरकार के दो वर्ष पूरे हो गये हैं। ममता बनर्जी भी अपनी दूसरी पारी श्ाुरू करने जा रही हैं। कांग्रेस व वाममोर्चा के गठबंधन को च्ाुनाव बाद भी कायम रखने की कवायद से ममता व मोदी के बीच की दूरियां घटेंगी। मां, माटी और मानुष के नारे के साथ सफर शुरू करने वाली ममता ने इसे दूसरी पारी के रूप में भी आगे बढ़ाया है। निकट भविष्य में पश्‍चिम बंगाल में भाजपा को सत्ता का स्वाद मिलने से रहा। ऐसे में भाजपा व केंद्र सरकार के लिए बंगाल में ममता बनर्जी को सपोर्ट करना ही बेहतर साबित होगा। बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी और उनके नए कैबिनेट सहयोगी 27 मई को जब शपथ लेंगे, तब उस समारोह में केन्द्रीय संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू भी मौजूद रहेंगे। व