जीत चाहे जिसकी हुई, पर हारी कांग्रेस


पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए भारी मायूसी लेकर आए हैं। जहां एक तरफ असम और केरल में हारकर कांग्रेस ने सत्ता गंवाई है, वहीं पश्‍चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी पार्टी के हाथ मायूसी ही लगी है। असम में बीजेपी ने पहली बार कमल खिलाकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया है। बुजुर्गवार नेता तरुण गोगोई लाख कोशिशों के बावजूद चौथी बार अपनी सरकार बनाने में नाकाम रहे। हालांकि अब कांग्रेस के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि राख से भी खड़े होकर दिखाएंगे। खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा है कि हम जनता का भरोसा जीतने के लिए फिर से कोशिश करेंगे। हम आपको राज्यवार बताते हैं कि किस तरह कांग्रेस ने अपनी सत्ता गंवाई और विधानसभा चुनावों का यह रण हार बैठी।
विधानसभा चुनावों में इस बार सबसे अधिक चर्चा असम को लेकर हुई। असम में कांग्रेस की सरकार ने अपना तीसरा कार्यकाल पूरा किया था। तरुण गोगोई चौथे कार्यकाल के लिए जनता की अदालत में पहुंचे थे। उधर, बीजेपी ने भी असम का किला फतह करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा था। विधानसभा चुनावों के बाद दोनों दलों ने जीत के दावे किए, लेकिन एग्जिट पोल बीजेपी के दावे को पुख्ता कर रहे थे। 19 मई को जब ईवीएम में दर्ज किस्मत खुली तो शुरुआती रुझान ने ही यह बता दिया कि गोगोई समेत कांग्रेस को जनता ने नकार दिया है। फिलहाल की स्थिति में असम की 126 सीटों में बीजेपी गठबंधन 85 सीटें निकालता दिखाई पड़ रहा है। कांग्रेस को 25 सीटें मिलती दिख रही हैं, जबकि एआईडीयूएफ को 12 सीटों के मिलने के आसार हैं। एआईडीयूएफ को एक बारगी हटा कर देखें तो यह स्थिति कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी हार के रूप में सामने आई है।
2011 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 78 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी को उस समय मात्र 5 सीट मिली थीं। 5 सीट से असम की सत्ता तक का सफर जहां बीजेपी के लिए प्रचंड सफलता लेकर आया है, वहीं 78 सीट से 25 सीट पर सिमटती कांग्रेस के लिए कठिन समय आ गया है।
केरल ने हमेशा की तरह इतिहास दोहराया है। एक सरकार केवल 5 साल के पैटर्न पर चलने वाली केरल की राजनीति में इस बार भी यही हुआ। केरल की 140 विधानसभा सीटों में कांग्रेस समर्थित यूडीएफ को 46 सीटें मिलती दिख रही हैं। वाम मोर्चे यानी एलडीएफ ने इस बार कांग्रेस को यहां पटखनी दे दी है। एलडीएफ 85 सीटें मिल रही हैं। बीजेपी ने भी केरल से एक सीट निकालने में कामयाबी हासिल कर ली है। केरल में ओमन चांडी के नेतृत्व में कांग्रेस समर्थित यूडीएफ की सरकार हाल में कुछ विवादों का शिकार हो गई। सोलर पैनल घोटाले से उठे सवालों ने चांडी सरकार को घेरे में ले लिया। उधर एलडीएफ ने वयोवृद्ध नेता अच्युतानंद के नेतृत्व में इस मौके को जाया नहीं होने दिया। इसतरह दिल्ली से सुदूर सत्ता का यह केंद्र भी कांग्रेस के हाथ से फिसल गया। 2011 के चुनावों में कांग्रेस गठबंधन को केरल में 73 सीटें मिली थीं, जबकि वाम गठबंधन 67 सीटों पर सिमट गया था। इस बार के आंकड़े से साफ है कि जनता ने कांग्रेस गठबंधन से मुंह मोड़ लिया है। पश्‍चिम बंगाल को लेकर कांग्रेस उम्मीद से थी। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए कांग्रेस ने अन्य राज्यों में अपने प्रतिद्वंद्वी वाम पार्टी से भी हाथ मिला लिया। चुनाव पूर्व ही कांग्रेस और सीपीएम के गठबंधन की घोषणा हो गई। बीजेपी भी बंगाल को लेकर आक्रामक रही। शारदा चिट-फंड घोटाले जैसे मामलों में टीएमसी को बैकफुट पर लाने के लिए चुनावी रैलियों के दौरान पीएम मोदी ने भी सीधे तौर पर ममता बनर्जी पर निशाना साधा।
लेकिन जब ममता की आंधी चली तो सबकुछ उड़ गया। फिलहाल की स्थिति में पश्‍चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों पर ममता बनर्जी की टीएमसी 213 सीटें जीतती नजर आ रही है। वहीं कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन को 72 सीटें मिलती दिख रही हैं। बीजेपी भी 4 सीटों पर जीत दर्ज करती नजर आ रही है।
ममता ने तमाम आरोपों और एकजुट विपक्ष को हराते हुए फिर से वापसी की है। 2011 के विधानसभा चुनावों में ममता को 184 सीटें लेफ्ट+ को 62 सीटें और कांग्रेस को 46 सीटें मिली थीं। ममता ने पिछली बार की तुलना में भी इस बार शानदार प्रदर्शन दिखाया है। कभी तमिलनाडु की राजनीति में सक्रिय हस्तक्षेप रखने वाली कांग्रेस को इस चुनाव में मिली हार ने यह सवाल उठाया है कि क्या यहां से भी कांग्रेस के पैर उखड़ चुके हैं? जयललिता से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठबंधन किया था। लेकिन 19 तारीख को जब ईवीएम खुली तो जयललिता यानी तमिलनाडु की अम्मा ने कांग्रेस समेत सबको अपने तिलिस्म से चकित कर दिया। तमिलनाडु की 232 सीटों पर हुए चुनाव में जयललिता को 126 सीटें मिलने के रुझान मिले हैं। करुणानिधि और कांग्रेस के गठबंधन को 103 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है। जाहिर तौर पर जयललिता दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं।

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