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अब भ्रामक विज्ञापन किये तो खैर नहीं

एक हफ्ते में गोरापन और 15 दिन में मोटापा कम करने जैसे तमाम विज्ञापन आपने टीवी पर देखे होंगे। हजारों- लाखों लोगों ने ऐसे प्रोडक्ट्स को खरीदा होगा जिससे वह एक हफ्ते में गोरे हो जाएं या फिर 15 दिन में अपना मोटापा कम कर लें। कई बार इनसे लोगों को फायदा होता है लेकिन बहुत बार वह धोखे का शिकार हो जाते हैं। टेलीविजन सहित तमाम संचार माध्यमों का मूल काम समाज में फैली कुरीतियों और बुराइयों को उजागर करना होता है, जिस से भोली-भाली जनता इन सब के चक्कर में ना पड़ें और जनता की मेहनत की कमाई को इन लूटेरों द्वारा लूटे जाने से बचाया जा सके। झूठे वादे और भ्रम ़फैलाने वाले विज्ञापन के कार्यक्रमों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए सरकार ने कई नियम बनाए  है पर इसके बावजूद इनका सही समय पर प्रयोग ना किये जाने के कारण इसका असर नाकाफी हो जाता है। ढेरों भ्रामक विज्ञापन इन दिनों प्रचार माध्यम खासकर टीवी पर  प्रसारित हो रहे हैं। उनमें से कही बाबा का दरबार लग रहा है तो कोई फिल्मी सितारा संधी-सुधा तेल बेच रहा है या फिर शनिदेव का प्रकोप या यंत्र तंत्र के विज्ञापन। ये लोगों को जिंदगी को रातों रात बदलने का दावा कर, अपना माल

कश्मीर पर गपबाजी से क्या हासिल होगा ?

पीओके को लेकर गरमागरम बयानबाजी के बीच हमारे कश्मीर में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहा। कश्मीर पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान को जवाब देने पर ज्यादा जोर रहा। राज्य के लिए किसी ठोस राजनीतिक पहल की शुरुआत का कोई संकेत नहीं मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक में कश्मीर की तमाम समस्याओं के लिए सीमा पार से हो रही आतंकी घुसपैठ को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) भी हमारा है। अब पाकिस्तान को पीओके और बलूचिस्तान में अत्याचार पर जवाब देना होगा। पिछले एक महीने से, जब से कश्मीर में हिंसा का यह दौर शुरू हुआ है, तब से पाकिस्तान हमारे खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा है। वह कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन का हल्ला मचा रहा है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पीओके में भी हालात बेहद खराब हैं। हाल में वहां हुए चुनाव में जबर्दस्त धांधली हुई है और लोगों का पाक सरकार के खिलाफ आक्रोश उफान पर है। धांधली के विरोध में स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए। उनका आरोप था कि चुनाव में मुस्लिम लीग को जिताने के लिए आईएसआई ने धांधली करवाई। विरोध करने वालों को सेना और पुलिस ने जम कर पीटा। वहां

डायलॉग ऐसे कि अभिनेता शरमाये

डायलॉग ऐसे कि अभिनेता शरमाये लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) गाय, दलित, हिंदू, अल्पसंख्यक, बीफ, योग और पता नहीं क्या-क्या। इनके बीच क्या समानता है, यह तो फिजिक्स, केमिस्ट्री, बॉयोलॉजी और मॉलीक्यूलर साइंस के ज्ञाता ही विस्तार से बता पायेंगे, लेकिन हम जैसे मंद ब्ाुद्धि इनके बीच एक ही समीकरण को कॉमन मान सकते हैं। वह है वोट। वोट के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते हैं। अपने 56 इंच वाले महापुरुष भी अगर भाव विभोर होकर इस पर बयान दे बैठें तो इसमें आश्‍चर्य कैसा? कांग्रेस, बसपा, सपा सहित सभी पार्टियां इन मुद्दों पर पहले ही स्वत्वाधिकार जमाये बैठी है। हालांकि ढके छुपे शब्दों में वे भी स्वीकार कर रहे हैं कि दो साल बाद ही सही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गाय, मानवता और आपसी भाईचारे पर खुलकर जो बोला, वह समय की मांग थी और प्रशंसनीय भी है। इससे निश्‍चय ही एक अच्छा संदेश गया है। यदि वह शुरू में ही इस पर बोलते, तो कुछ और बात होती। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण से जल, जंगल व जमीन के साथ सिर्फ गाय ही नहीं, पूरा पशुधन तेजी से लुप्त हो रहा है। बेचारी गाय ही नहीं, अब तो इंसान की भी कहां कदर रह गई है? व

नाम की महिमा निराली

Lokenath Tiwary लोकनाथ तिवारी बचपन में एक कहावत सुनी थी अंधे का नाम नयन सुख यानि ग्ाुण के विपरीत नाम होना। बचपन में ऐसे नामों को हंसी का पात्र माना जाता था। हमारे यहां तो नाम बिग़ाडने की भी परंपरा थी। अगर किसी अनपढ़ गंवार पगलेट का नाम सुखराम होता था तो उस गांव जवार के लोग अपने बच्चों का नाम सुखराम रखने से बचते थे। हमारे यहां नाम रखने का दौर भी चलता था। सुनील गावसकर के जमाने में सुनील और राजेश खन्ना के जमाने में राजेश नाम के दर्जनों बच्चे एक ही गांव में पाये जाने लगे। अब कहियेगा कि आज नाम को लेकर चर्चा की क्या सूझी। हमारी मुख्यमंत्री राज्य का नाम परिवर्तन करनेवाली हैं। पश्‍चिम बंगाल का नाम बदलकर बंगला या बंगो किया जा सकता है। वहीं पश्‍चिम बंगाल को अंग्रेजी में बंगाल के नाम से जाना जायेगा। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि नाम बदलने से हमारा राज्य आगे आ जायेगा। हाल के सालों में देश के कई शहरों का नाम बदला गया था। हरियाणा में गुड़गांव का नाम बदलकर गुरूग्राम कर दिया गया था। इससे पहले कई राज्यों का भी नाम बदला गया। इनमें हैदराबाद शामिल है जिसका नाम बदलकर आंध्र प्रदेश कर दिया गया था। वहीं मद्र

कर्जखोरों की महिमा के आगे नतमस्तक जनता

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) हमारे दादा जी कहा करते थे कर्ज लेकर घी पीने से बेहतर है खाली पेट ग्ाुजर बसर करना। दादा जी की बचपन में दी गयी यह सीख आज भी गांठ बांध कर बैठा हूं, या यूं कहिए कि ग्ाुजर बसर ही कर रहा हूं। वर्तमान में कर्ज लेकर चांदी काटनेवाले लोगों की महिमा देखकर लगता है कि दादा जी की सीख पर अमल कर मैं अपना और अपने परिजनों का भ्ाूत, वर्तमान और भविष्य बिगाड़ रहा हूं। वर्तमान हालत देखकर दादा जी की कही बात के विपरीत कर्जखोर शान से मालामाल जीवन जी रहे हैं। पूछियेगा कि आज सुबह-सुबह दादा जी की सीख का रोना क्यों रो रहा हूं तो इसके पीछे की बात भी सुन ही लीजिए। हाल ही में ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉयी एसोसिएशन (एआईबीईए) ने बैंकों से कर्ज लेकर साफ हजम कर जाने वाले 5610 कथित उद्यमियों की जो लिस्ट जारी की है। लोगबाग विजय माल्या को तो पानी पी पीकर कोसते हैं, जोे करीब नौ हजार करोड़ रुपया लेकर विदेश में जा बैठे, लेकिन इस लिस्ट पर नजर डालेंगे तो समझ में आ जायेगा कि उनके जैसे बहुतेरे लोग आज भी हमारे देश में बिंदास घूम रहे हैं। इस लिस्ट से पता चलता है कि भारत में कर्जखोरी बड़े लोगों का शगल बन गया

खुशनसीब हो जो ऐसे रहनुमा मिले

लोकनाथ तिवारी, Lokenath Tiwary अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुझे नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं। अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है। आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे। मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली। अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले कई जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है। ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे। बाकी लोग क्या जाने पीर पराई। उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समझेंगे। यहां तो सूर्योदय देखना साल में एकाध दिन ही नसीब हो पाता है। आधी रात के बाद घर पहुंचते हैं और रमजान के सहरी के समय पर डिनर लेते हैं। उल्लुओं की तरह सोते हैं। जब तक बिस्तर से निकलते हैं तब तक लोगबाग अपने-अपने काम में मगन रहते हैं। बीबी के नसीब से मिली नौकरी की बड़ाई का क्या करूं। खोलकर बता दूं कि पत्रकारिता कर किसी तरह गुजर हो रहा है। खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी। बात

खुद पर हंसना आसान नहीं

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) खुद पर हंसना आसान नहीं होता। जो ऐसा करते हैं वे जिंदादिल होते हैं। सिख भी उन्हीं में से एक हैं। स्वयं पर बनाये गये चुटकुलों पर अट्टाहास कर वे यह साबित करते हैं कि वे दूसरों की तुलना में कितने उदार हृदयी और ख्ाुले दिलवाले हैं। भले ही सिखों के एक वर्ग को उन पर बनाये गये च्ाुटकुले रास न आते हों लेकिन आज तक हमारे सरदार मित्रों ने इस तरह की भावना नहीं दर्शायी है। उन पर चुटकुले सुनाकर तो कई बार सुनानेवाले ही हंसी के पात्र बन जाते हैं। अब अदालत में सिखों पर बने चुटकुले पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर शोर से उठायी जा रही है। सिखों पर बनाए जाने वाले चुटकुलों को किस तरह से रोका जाए, इसके तरी़के बताने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सिख समूहों को छह सप्ताह का समय दिया है।  गौरतलब है कि सिख चुटकुलों पर पाबंदी की मांग करते हुए दिल्ली की 54 वर्षीय सिख वकील, हरविंदर चौधरी ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की थी। अदालत में दायर अपील में चौधरी ने कहा था कि इंटरनेट पर पांच हज़ार वेबसाइट हैं जो सिखों पर चुटकुले बनाकर बेचती हैं। इन चुटकुलों में सिखों को बुद्धू, पागल, मूर