Posts

वादा पे तेरे मारा गया...

वादा पे तेरे मारा गया... हर च्ाुनाव के पूर्व राजनीतिक पार्टियां लोकलुभावन वादे करती हैं। पढ़े लिखे समझदार होने का दावा करने वाले सीधे सादे बंदे इन वादों पर अपना वोट वार देते हैं। माना जाता है कि चुनाव के हर मौसम की एक थीम होती है। अक्सर कोई एक मुद्दा होता है, जिस पर चुनाव लड़े जाते हैं। या फिर कुछ वादे होते हैं, हर बार चर्चा का कोई एक मामला तो होता ही है, जिसके आस-पास चुनाव होते हैं। इस बार के विधानसभा चुनावों की थीम है- देसी घी। कम से कम पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश तक चुनाव देसी यानी शुद्ध घी और उसके वादे के आस-पास लड़े जा रहे हैं। शुरुआत पंजाब से हुई। वहां भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में कहा कि उनका गठबंधन अगर सत्ता में आया, तो निम्न वर्ग के नीले राशन कार्डधारकों को 25 रुपये प्रति किलो की दर से देसी घी दिया जाएगा। यह मामला दिलचस्प इसलिए है कि पंजाब के इस गठजोड़ में भाजपा दूसरे नंबर की सहयोगी है, पहले नंबर का या नेतृत्व करने वाला बड़ा सहयोगी अकाली दल है, जिसने अपने चुनाव घोषणापत्र में हर गांव में मुफ्त वाई-फाई और क्लोज सर्किट टीवी की बात तो की, लेकिन देसी घी उसमें कहीं नहीं था। बाद में

हमारे संस्कृति प्रेमी योद्धा

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) संस्कृति प्रेमी योद्धाओं के समर्थन में सड़कछाप ज्ञानियों व बयानवीरों की फौज मुखर हो गयी है। उन्हें शायद यह नहीं पता कि जयपुर के जयगढ़ किले में करणी सेना के लोगों ने फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ मारपीट करके राजस्थान की उस महान सांस्कृतिक दृष्टि का अपमान किया है जो अपने संगीत और कलाप्रेम के लिए पूरी दुनिया में पहचानी और सराही जाती है। उन्होंने निर्माणाधीन फिल्म ‘पद्मावती’ की उस स्वघोषित स्क्रिप्ट को लेकर फिल्म यूनिट के खिलाफ हिंसा का रास्ता चुना जिसे वह जानते तक नहीं थे। इससे वह सभी जगहों पर हास्य के पात्र भी बने हैं। कलाकार की वह रचना जो अभी सामने ही नहीं आई, जिसके स्वरूप के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं, उसपर इस तरह का विरोध सरासर नाजायज ही कहा जाएगा।  भंसाली प्रॉडक्शन्स ने स्पष्ट कहा है कि फिल्म की पटकथा में पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच कोई रोमांटिक दृश्य नहीं है। भंसाली प्रॉडक्शन ने साफ किया कि पद्मावती और खिलजी के किरदारों के बीच कोई भी आपत्तिजनक या फिर रोमांटिक सीन नहीं फिल्माया गया है। जब फिल्म बनकर रिलीज होती और फिर यह बात सामन

सम्मान दें बजुर्गों के तजुर्बे को

लोकनाथ तिवारी (लोकनाथ तिवारी) बालगंगाधर तिलक ने एक बार कहा था कि ‘तुम्हें कब क्या करना है यह बताना बुद्धि का काम है, पर कैसे करना है यह अनुभव ही बता सकता है।’ किसी ने सच ही कहा है: ‘फल न देगा न सही, छाँव तो देगा तुमको। पेड़ बूढ़ा ही सही, आंगन में लगा रहने दो।’ बुजुर्ग अनुभवों का वह खजाना है जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड़ पर उचित दिशा निर्देश करते हैं। बुजुर्ग घर का मुखिया होता है इस कारण वह बच्चों, बहुओं, बेटे-बेटी को कोई गलत कार्य या बात करते हुए देखते हैं तो उन्हें सहन नहीं कर पाते हैं और उनके कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं जिसे वे पसंद नहीं करते हैं। वे या तो उनकी बातों को अनदेखा कर देते हैं या उलटकर जवाब देते हैं। जिस बुजुर्ग ने अपनी परिवार रूपी बगिया के पौधों को अपने खून पसीने रूपी खाद से सींच कर पल्लवित किया है, उनके इस व्यवहार से उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है। एक समय था जब बुजुर्ग को परिवार पर बोझ नहीं बल्कि मार्ग-दर्शक समझा जाता था। आधुनिक जीवन शैली, पीढ़ियों में अन्तर, आर्थिक-पहलू, विचारों में भिन्नता आदि के कारण आजकल की युवा पीढ़ी निष्ठुर और कर्तव्यहीन हो गई है। जिसका खामिया

काले धनिक कितने महान

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) हमारे देश में काले धन से महान बने अमीर पूज्यनीय व्यक्ति हैं। वैसे अपने देश में यह कहावत हर छोटे-बड़े खूब चाव से कहते हैं कि जो पकड़ा गया वही चोर है। जब तक पकड़े नहीं गये तब तो उनके नाम के आगे कसीदे पढ़े जाते हैं। अभी दो दिन पहले तक लग रहा था कि इस हरकत में कुछ लोग ही शामिल हैं। कुछ बैंक कर्मचारी, कुछ मैनेजर, कुछ सोने के व्यापारी नोटबंदी के बाद के हालात का फायदा उठाते हुए चांदी काट रहे हैं। अब तो पद्म भूषण से सम्मानित डॉक्टर सुरेश आडवाणी पर 10 करोड़ रुपये के प्रतिबंधित नोटों की हेराफेरी का आरोप लगा है। फिलहाल सीबीआई ने मामला दर्ज कर लिया है और सीबीआई की एक टीम आरोपों की जांच में जुटी है। 8 नवंबर के बाद कालेधन के खिलाफ छिड़ी मुहिम में अब तक आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और तमाम जांच एजेंसियां अरबों के कालेधन का खुलासा कर चुकी है। दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित टीएंडटी लॉ फर्म के मालिक रोहित टंडन, कोलकाता के बड़े कारोबारी पारसमल लोढ़ा से लेकर कई सफेदपोश शख्सियतें अभी तक इस कालेधन के खेल में बेनकाब हो चुकी हैं। सूरत के चाय बेचने वाले अरबपति किशोर भजियावाला की संपत्त

मैं पीता नहीं हूं, पिलायी गयी है

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) कौन कहता है कि मैं पियक्कड़ हूं। अरे भई इसमें मेरा दोष नहीं बल्कि यह तो मेरे जीन का दोष है। हमारे शरीर में एक ऐसा जीन है, जिसके कमजोर पड़ते ही हम पर पियक्कड़ी का भूत सवार हो जाता है। वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में एक ऐसा जीन खोज निकाला है, जो लोगों को एक हद से ज्यादा शराब पीने से रोकता है। बीटा क्लोथो नाम का यह जीन व्यक्ति के अंदर शराब के उपभोग को एक सीमा से ज्यादा न बढ़ाने की इच्छा पैदा करता है। अगर यह बीटा क्लोथो कमजोर पड़ जाये तो हम मधुशाला की डगर पर चलने को मजबूर हो जाते हैं। टेक्सास यूनिवर्सिटी ने इसके लिए एक लाख से भी ज्यादा लोगों पर शोध किया और पाया कि जिन लोगों में यह जीन था, उनमें बेतरह पीने की लत नहीं थी। इसके बाद वैज्ञानिकों ने कुछ चूहों में यह जीन डालकर एक और प्रयोग किया, तो पाया कि इस जीन वाले चूहों को शराब की लत नहीं लगी। उन्होंने पाया कि इस जीन की वजह से हमारे लीवर में बीटा क्लोथो नाम का एक हार्मोन पैदा होता है। इस हार्मोन के असर करने की प्रक्रिया बड़ी जटिल होती है। लेकिन जब यह हार्मोन सक्रिय होता है, तब पीने वाले के मस्तिष्क को यह संदेश भेजता ह

नोटबंदी के खिलाफ आंदोलन पड़ा कुंद

नोटबंदी के बाद गांवों में लोग अपने ही पैसे के लिए मारे मारे फिर रहे हैं, लेकिन विपक्षी शहरों में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। लगन (शादी विवाह) के समय में लोगों की इज्जत दाव पर लगी है। किसानों की जमीन में नकदी बिना सिंचाई नहीं हो पा रही, लेकिन विरोधी पार्टियां इस मौके का लाभ लेने में विफल रहीं। इनका विरोध केवल शहरों तक सीमित रहा। लोगों की सहानुभ्ाूति अर्जित करने में विपक्षी पार्टियां नाकाम रही हैं। नोटबंदी के बाद कितना कालाधन आया या कितने लोग पकड़े गये, इसकी आम जनों को फिक्र नहीं है। इसका लाभ या नुकसान पता करने में सरकार भी नाकाम है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी स्पष्ट किया है कि नोटबंदी के बाद कितना कालाधन बैंकों में जमा हुआ यह बताना मुमकिन नहीं है। ऐसे में आंकड़ों की बाजीगरी बताने के बजाय ग्रामीणों व किसानों की समस्या पर बहस हो तो विपक्ष को माइलेज मिल सकती है। यहां तो विपक्ष ख्ाुद ही बिखरा हुआ है। संसद का शीतकालीन सत्र बेवजह नोटबंदी की भेंट चढ़ गया। कमजोर और बिखरा विपक्ष अकसर सत्तारूढ़ दल को निरंकुश बना देता है, यह बात नोटबंदी के फैसले से उजागर हुई। एक बेहद संवेदनशील और अहम मुद्दे पर कांग

गया टेट में नगदी का जमाना

एक समय की बात है, जिसकी टेट में जितनी नकदी होती थी, उसे उतना ही रोबदाब वाला समझा जाता था। अब यह ग्ाुजरे जमानेवाली बात हो गयी है। वह दिन दूर नहीं जब टेट में ख्ाुदरा भी नहीं रहेगा। लगता है हमारे मुखिया हमें कैशलेस बनाकर ही दम लेंगे। या यूं कहिए कि कैशलेस होना हमारी मजब्ाूरी होने जा रही है। कई जानकार बता रहे हैं कि इसमें कोई ब्ाुराई भी नहीं। अब तो हमारे काका भी एटीएम, पेटीएम, जियो वालेट और प्लास्टिक मनी के दौर में पहुंच गये हैं। भले ही उनको अपनी रोजमर्रा की जीवन कांख कराह कर काटनी पड़ रही हो। आजकल हम एटीएम के सामने कतारबद्ध जीवन ग्ाुजार रहे हैं। ज्ञान ग्ाुण सागर अर्थ शास्त्री यह बताते थकते नहीं कि किस देश में कितनी दुकानदारी और खरीदारी कैशलेस होती है। कहा जा रहा है कि इस मामले में हम नाइजीरिया तक से पीछे हैं। कैशलेस समाज बनाने के संकल्प अब हर जगह दिखने लग गए हैं। हमारे सार्वजनिक विमर्श का यह नया अध्याय है। कभी महात्मा गांधी भेदभाव मुक्त समाज बनाना चाहते थे, समाजवादियों और साम्यवादियों ने समतामूलक समाज की बात की थी, नेहरू जैसे कई थे, जो लोकतांत्रिक समाज बनाने की बात करते थे। अब ये सारे संक