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खुशनसीब हो जो ऐसे रहनुमा मिले

लोकनाथ तिवारी, Lokenath Tiwary अब तक मेरी बेटर हाफ या यूं कहिए कि मेरा दिल, जिगर, कलेजा, फेफड़ा, मन, मिजाज और भी बहुत कुछ, मेरी मलिकाइन ही मुझे नसीब का ताना देकर कोसती रहती थीं। अब इसमें एक और साहब का दखल हो गया है। आपकी भउजाई (अरे भई गोलुवा की मम्मी) सदा यही कहती रहती हैं कि पहले आप निठल्ले घूमते रहते थे। मेरे चरण इस घर में, और मेरा हाथ आपके हाथ में आने के बाद मेरे नसीब से आपको ये नौकरी मिली। अब उसे कौन बताये कि ये नौकरी किसी के नसीब का फल नहीं बल्कि मेरे पिछले कई जन्मों के पापों की एकमुश्त सजा है। ये तो वही समझ सकते हैं, जो मेरी तरह निशाचर होंगे। बाकी लोग क्या जाने पीर पराई। उनके पैरों में बिवाई फटी होगी तब न समझेंगे। यहां तो सूर्योदय देखना साल में एकाध दिन ही नसीब हो पाता है। आधी रात के बाद घर पहुंचते हैं और रमजान के सहरी के समय पर डिनर लेते हैं। उल्लुओं की तरह सोते हैं। जब तक बिस्तर से निकलते हैं तब तक लोगबाग अपने-अपने काम में मगन रहते हैं। बीबी के नसीब से मिली नौकरी की बड़ाई का क्या करूं। खोलकर बता दूं कि पत्रकारिता कर किसी तरह गुजर हो रहा है। खैर अपनी नौकरी का रोना फिर कभी। बात

खुद पर हंसना आसान नहीं

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) खुद पर हंसना आसान नहीं होता। जो ऐसा करते हैं वे जिंदादिल होते हैं। सिख भी उन्हीं में से एक हैं। स्वयं पर बनाये गये चुटकुलों पर अट्टाहास कर वे यह साबित करते हैं कि वे दूसरों की तुलना में कितने उदार हृदयी और ख्ाुले दिलवाले हैं। भले ही सिखों के एक वर्ग को उन पर बनाये गये च्ाुटकुले रास न आते हों लेकिन आज तक हमारे सरदार मित्रों ने इस तरह की भावना नहीं दर्शायी है। उन पर चुटकुले सुनाकर तो कई बार सुनानेवाले ही हंसी के पात्र बन जाते हैं। अब अदालत में सिखों पर बने चुटकुले पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर शोर से उठायी जा रही है। सिखों पर बनाए जाने वाले चुटकुलों को किस तरह से रोका जाए, इसके तरी़के बताने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सिख समूहों को छह सप्ताह का समय दिया है।  गौरतलब है कि सिख चुटकुलों पर पाबंदी की मांग करते हुए दिल्ली की 54 वर्षीय सिख वकील, हरविंदर चौधरी ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की थी। अदालत में दायर अपील में चौधरी ने कहा था कि इंटरनेट पर पांच हज़ार वेबसाइट हैं जो सिखों पर चुटकुले बनाकर बेचती हैं। इन चुटकुलों में सिखों को बुद्धू, पागल, मूर

कैसे सुधरे रिश्‍वत देने की आदत

कैसे सुधरे रिश्‍वत देने की आदत लोकनाथ तिवारी रिश्‍वत देना अब हमारी आदत बन गयी है। बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र से लेकर मृत्यु प्रमाणपत्र तक के लिए हम इतनी आसानी से रिश्‍वत ऑफर कर बैठते हैं, जितनी आसानी से हमारे नेता झ्ाूठ झ्ाूठ बोलते हैं। रिश्‍वत लेना-देना अब नौकरशाही के अनेक नियमों में से एक नियम हो गया है। अब लोग रिश्‍वत लेने-देने को बुरा नहीं समझते बल्कि जो इस बात का विरोध करता है, उसे बेवकूफ़ और अति आदर्शवादी या पागल मान लेते हैं। बाबा आदम के जमाने में शायद रिश्‍वत लेने वालों को समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था। अब ऐसा नहीं है। अब तो बाकायदा उनका ग्ाुणगान किया जाता है। उनकी शान में कसीदे पढ़े जाते हैं। पहले शपथ दिलायी जाती थी कि ईमानदारी से कर्तव्य का पालन करेंगे। अब भी शपथ लेते हैं पर पहले ही घ्ाूस देकर सर्विस हासिल करनेवालों से शपथ पर कायम रह पाना उचित भी नहीं कहा जा सकता। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या रिश्‍वतखोरी की हो गयी है। अब तो लोग इसे समस्या मानना ही बंद कर दिये हैं। इसे रोजमर्रा के  जीवन का एक हिस्सा मान लिये हैं। शासन प्रणाली के हर छोट

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के बुधवार को 20 उपग्रहों का एक साथ प्रक्षेपण करने के चलते भारत मानव इतिहास में ऐसा करने वाला तीसरा देश बन गया है। इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पीएसएलवी सी 34 के ज़रिए 20 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जिनमें 3 स्वदेशी जबकि 17 विदेशी उपग्रह हैं। इनमें कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों द्वारा तैयार स्वयं’ नाम की एक सैटेलाइट भी शामिल है। इससे पहले सिर्फ रूस और अमेरिका ही ये कारनामा कर सके हैं। 20 उपग्रह एक साथ भेजकर भारत अब रूस और अमेरिका की श्रेणी में पहुंच गया है। साल 2013 में अमेरिका ने 29 जबकि साल 2014 में रूस ने इसी तरह 33 उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित किए थे। भारत द्वारा भेजे गए उपग्रहों में कनाडा, अमेरिका, इंडोनेशिया और जर्मनी के उपग्रह भी शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि इसरो ने इस तरह का प्रक्षेपण पहली बार किया है। इससे पहले इसरो ने सिंगल मिशन के तहत 2008 में एक बार में 10 उपग्रह प्रक्षेपित किए थे। इसरो ने अपना पहला रॉकेट साल 1963 में लॉन्च किया था। शुरुआत के ठीक 9 साल के अन्दर वर्ष 1975 में इसरो ने पहला उपग्रह सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा मे

हाथी की सवारी कर, महावत ना बन

लोकनाथ तिवारी (Lokenath Tiwary) हाथी की सवारी करना आसान है यह तो मैं बखूबी जानता हूं। आखिर बचपन में ही उसकी सवारी जो किया है। भैया की बारात में महावत (पिलवान) की मदद से बड़ी आसानी से हौज पर बैठ कर आनंद उठाया था। अब हाथी की सवारी करते करते कोई महावत बनने का मुगालता पाल बैठे तो उसकी हालत भी स्वामी प्रसाद मौर्या जैसी होनी लाजिमी है। इतिहास गवाह है कि सुश्री मायावती ने बहुजन समाज पार्टी में कभी भी अपना वारिस पैदा नही होने दिया। पार्टी छोड़ने से पहले बसपा के नंबर दो नेता स्वामी प्रसाद मौर्या हों या नसीमुद्दीन सिद्दीकी और फिर चाहे वो सतीश चन्द्र मिश्र के रूप में पार्टी के सवर्ण चेहरा ही क्यों ना हों। ये सभी बसपा में किसी कम्पनी के सीईओ की भूमिका से ज्यादा नही दिखे। ऐसे सीईओ जो अपने वेतन के मुताबिक काम करते हैं और निर्णय का काम बॉस यानि सुप्रीमो मायावती के हवाले होता है। भारतीय राजनीति की ये विडम्बना ही है जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के सबसे बड़े राज्य में एक राष्ट्रीय दल की आंतरिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था इतनी कमजोर हो। खैर, ये तो भारत में इंदिरा गांधी के कांग्रेस और फिर दक्षिणी द्रविड़

जोगी जी धीरज नाहि धरे

शरद पवार व ममता बनर्जी को अपवाद माना जाये तो अब तक अपनी मदर पार्टी को छोड़कर अलग होनेवालों को सफलता कम ही मिली है। हां ज्योति से ज्वाला बनने का क्षणिक सुख उनको अवश्य मिलता है। अब छत्तीसगढ़ के छत्रप का क्या हाल होगा यह तो आनेवाला समय ही बतायेगा। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी आज से ठीक तीस वर्ष पूर्व इसी जून माह में मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। कांग्रेस में अपनी राजनीतिक यात्रा के तीन दशक पूरे करने के अवसर पर श्री जोगी ने पार्टी हाईकमान को संदेश भेजा है कि वे पृथक क्षेत्रीय दल बनाने की राह पर हैं। वे जितने जल्दी अपनी इस धमकी पर अमल करें, उतना ही बेहतर। उनके लिए भी व मातृसंस्था के लिए भी। उनके लिए इसलिए कि ढाई साल बाद होने वाले चुनावों में यदि किसी दल को बहुमत न मिला तो किंगमेकर की भूमिका निभाने का मौका उन्हें मिल जाएगा। कौन कहे कि वे किंग ही न बन जाएं! कांग्रेस के लिए जोगी का अलग हो जाना इस लिहाज से मुआफिक होगा कि पार्टी को रोज-रोज की अन्तर्कलह तथा भीतरघात से छुटकारा मिल जाएगा। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन होने पर पार्टी में भारी विरोध के बावजूद हाईकमान की सदिच्छा स

राष्ट्रीय राजनीति मेंं दीदी की धमक

राष्ट्रीय राजनीति मेंं दीदी की धमक राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी का आना अब बस समय की बात है। राष्ट्रीय स्तर पर उनके जैसे नेतृत्व की जरूरत सभी को महसूस होने लगी है। ममता बनर्जी भी शायद इसके लिए अंदर से तैयार हैं। अंदर की बात है कि अपने उत्तराधिकारी के तौर पर भी उन्होंने एक नाम सोच लिया है। इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने भाई के बेटे और सांसद अभिषेक बनर्जी को काफी प्रचारित किया। जीत के बाद भी मैच विनर और मैन ऑफ द मैच के रूप में बड़े बड़े पोस्टर और बैकर राज्य व्यापी दिखने लगे हैं। च्ाुनाव में भारी सफलता का श्रेय भी अभिषेक बनर्जी को दिए जाने के ममता के रवैये ने यह साबित किया है कि अभिषेक ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि हो सकता है इससे पार्टी के दूसरे नेताओं में भविष्य में नाराजगी  भर जाए लेकिन बहरहाल सब ठीक है। दीदी उत्साहित भाव से चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार दिख रहीं है।  भाजपा और कांग्रेस विरोधी फ्रंट के नेता के रूप में ममता बनर्जी के नाम पर चर्चा श्ाुरू भी हो च्ाुकी है। ममता की ताजपोशी के मौके पर लालू प्रसाद यादव न